वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2157
From जैनकोष
कल्याणविभवं श्रीमान सर्वास्युदयसूचकम् ।
समासाद्य जगद्वंद्यं त्रैलोक्याधिपतिर्भवेत् ।।2157।।
जगद्वंद्य त्रैलोक्याधिपति―अंतरंग और बहिरंग लक्ष्मी कर के सहित केवली भग-वान तीन लोको से वंदनीय हैं और कल्याणरूपी वैभव को पाकर तीनों लोक के अधिपति हैं ।लोक में सबसे बड़ा कौन है? दृष्टि पसारकर निरखो तो जिसे संसार में मोहीजन बड़ा मानते हें वे भी किसी अन्य को बड़ा समझते हैं और इस तरह एक दूसरे बड़े की शरण में रहते हैं पर वे प्रभु केवली भगवान तो इतने महान हैं कि जिनकी शरण में देव देवेंद्र योगीश्वर आदि वंदना करने के लिए पहुंचते हैं, वे प्रभु परम कल्याणरूपी वैभव के अधिपति हैं ।