वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2162
From जैनकोष
सर्वज्ञ: क्षीणकर्मासौ केवलज्ञानभास्कर: ।
अंतर्मुहूर्तशेषायुस्तृतीयं ध्यानमर्हति ।।2162।।
प्रभु में तृतीय शुक्लध्यान की योग्यता का काल―कर्मों से रहित केवलज्ञानरूपी सूर्य से पदार्थों को प्रकाश करने वाले वे सर्वज्ञदेव जब उनके अंतर्मुहूर्त प्रमाण आयु शेष रह जाती है तब सूक्ष्मक़ियाअप्रतिपाति शुक्लध्यान के योग्य होते हैं । अरहंत भगवान का जीवन करोड़ों वर्षों का भी हो, 13वें गुणस्थान में करोड़ों वर्ष भी कवलाहार बिना परम पवित्र योग्य शरीर वर्गणावों के आहार लेते रहने से उनका शरीर दिव्य और दीप्त रहा करता है । जब आखिरी अंतर्मुहूर्त शेष रह जाय, मानो दो एक मिनट रह जाय उस समय तृतीय शुक्लध्यान होता है । यहाँ एक शंका यह हो सकती है कि किसी भगवान की आयु तो रह गयी अत्यल्प और शेष कर्मों की स्थिति हो अभी हजारों वर्ष तो ये सब कर्म एक साथ कैसे समाप्त होंगे? आयु शीघ्र ही खतम हो जायगी, तो फिर ये कर्म कहाँ रहेंगे? तो उसके उत्तर में कहते हैं―