वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2170
From जैनकोष
काययोगं ततस्त्यक्त्वा स्थितिमासाद्य तद्वये ।
स सूक्ष्मीकुरुते पश्चात् काययोगं च वादरम् ।।2170।।
वादरकाययोग का सूक्ष्मीकरण―यह योग क्या चीज है? आत्मा के प्रदेशों के कंपन का नाम, हलन का नाम योग है । जैसे आप जब गुस्सा कर रहे हैं, शरीर से अनेक प्रकार के कार्य कर रहे हैं तो उस समय आत्मा के प्रदेश ज्यादह हिलते हैं । यह बात तो झट मान ली जाती है और जब कभी आप एक पद्मासन से निश्चल आसन से बैठे हुए हैं जहाँ रंच भी देह का हलन नहीं हो रहा तो उस समय भी आपके आत्मा के प्रदेश भीतर कंपन कर रहे हैं ।जैसे किसी बटलोही में पानी भरकर उसे गर्म किया जा रहा है तो उसमें अंदर ही अंदर बिंदुवें उठकर यत्र तत्र भ्रमण करती रहती हें, इसी प्रकार आत्मा के प्रदेशों में भी एक कंपनसा होता है । उस कंपन का नाम है योग । ये योग हम आप सबके चल रहे हैं । अब सयोगकेवली भगवान अयोगकेवली होने को हैं जहाँ योग नहीं रहेंगे, निष्कंप अवस्था रह गयी । उस अवस्था रहने के पहिले योग किस तरह समाप्त होते हैं उसकी विधि बतायी जा रही है । अब वे भगवान काययोग को छोड़कर वचनयोग और मनोयोग में ठहरकर वादरकाययोग को सूक्ष्म करते हैं । एक समय में एक जीव के एक योग रहा करता है । जैसे किसी एक सम्यग्दृष्टि चतुर्थ गुणस्थान वाले जीव के योग पाये जायेंगे कितने? आहारकाययोग, आहारक मिश्रकाययोग और योगरहित के बिना ग्यारह योग तो चतुर्थ गुणस्थान में होते हैं, किंतु औदारिकद्वय व वैक्रियकद्वय एक सम्यग्दृष्टि के नही पाये जाते । एक सम्यग्दृष्टि का अर्थ है चाहे वह देव हो, चाहे नारकी हो या मनुष्य हो, या संज्ञी तिर्यंच हो, कोई एक ले लो । तो अगर मनुष्य सम्यग्दृष्टि है तो वैक्रियक काययोग, वैक्रियक मिश्रकाययोग न हो सकेंगे । तब ग्यारह योग होंगे । उन ग्यारह योगों में एक साथ उनकी वृत्ति नहीं है । कार्माण काययोग तो विग्रहगति में था, औदारिक मिश्रकाययोग जन्म स्थान पर पहुंचने पर था अब नहीं रहा । अब तो 9 योग चल रहे । उनमें भी एक समय में एक योग रहेगा, शेष 8 न रहेंगे । यहाँ सयोगकेवली की बात चल रही है, सो ये किसी एक योग में रहकर अन्य योग का निरोध करते हैं । काय-योग से सूक्ष्म काययोग का नंबर आया तो वे अरहंत भगवान या तो वचनयोग में आ जायेंगे या सूक्ष्म मनोयोग में आयेंगे । उस समय वादरकाययोग को कृश कर दिया जायगा । तो अब वादरकाययोग भी उनके नहीं रहा । तब क्या रहा? सूक्ष्मवचनयोग, सूक्ष्ममनोयोग और सूक्ष्मकाययोग । अब इन तीनों योगों का निरोध कैसे होता है? उसे बताते हैं ।