वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2171
From जैनकोष
काययोगे तत: सूक्ष्मे स्थितिं कृत्वा पुन: क्षणात् ।
योगद्वयं निगृहणाति सद्यो वाक्चित्तसंज्ञकम् ।।2171।।
सूक्ष्मकाययोग में स्थित प्रभु के समस्त वचनयोग व मनोयोग का विनाश―अब वे भग-वान सूक्ष्मकाययोग में स्थिति कर के सूक्ष्मवचनयोग और सूक्ष्ममनोयोग को नष्ट कर देते हैं, इस समय वे भगवान केवल सूक्ष्म काययोग में रह गये । और वादरकाययोग सभी मनोयोग और सभी वचनयोग, ये दूर हो गये । इस समय प्रभु में सूक्ष्मकाययोग रह गया । यह स्थिति बतायी जा रही है उन अरहंत भगवान के अंतिम समय की, जिसके बाद उनको अयोगकेवली भगवान की स्थिति प्राप्त होनी है । जिस समय समस्त योगों को नष्ट कर के सूक्ष्मयोग में आ गए तो क्या होता है, उसका वर्णन करते हैं ।