वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2202
From जैनकोष
वाक्पथातीतमाहात्म्यमनंतज्ञानवैभवम् ।
सिद्धात्मनां गुणग्रामं सर्वज्ञज्ञानगोचरम् ।।2202।।
सिद्धात्मा के गुणों की सर्वज्ञज्ञानगोचरता―जिसको माहात्म्य वचनों से नहीं कहा जा सकता, जिसके अनंत ज्ञान का विभव है ऐसे सिद्ध परमेष्ठियों का गुणसमूह सर्वज्ञ के ज्ञान के गोचर है । जैसे धनिकों की बात धनिक ही जानें, क्या खर्च होता है, क्या खर्च दिखाते हैं, क्या आय दिखाते है―ये सब बातें धनिकों को ही विदित होती हैं । गरीब क्या जानें? जो जिसके समक्ष हो वह उसके दुःख, सुख, चिंता, उल्झन आराम आदि सारी बातों को परख सकता है । ज्ञानी पुरुष ज्ञानी के मर्म को परख सकता है । जो जिस गुण का प्रेमी है वह उस गुण की बात को जान सकता है । एक सभा में संगीत हो रहा था, तो बहुत से लोग एक लाइन में संगीत वाले बैठे हुए थे और संगीत बजा रहे थे । उस समय एक कोई अंधा पुरुष भी उस संगीत सभा में बैठा हुआ था । वह भी संगीतकला का विशेष जानकार था । तो उसने उस संगीत के संबंध में बताया कि इनमें जो इतने नंबर पर बैठा हुआ तबल्ची है उसका अंगूठा निजी नहीं है, बनावटी है, वह तबले की आवाज सुनकर परख गया था । जब लोगों ने देखा तो उन्हें यह बात सही दिखी । उसकी उस कला को देखकर जो उसमें नृत्यकारिणी वेश्या थी वह बहुत प्रसन्न हुई । अब दूसरी बात देखो―उस संगीत के साथ-साथ वह नृत्यकारिणी गाती भी जाती थी और नाच भी रही थी । तो उस समय उसके शरीर पर कोई भ्रमर आकर बैठ गया । अब वह नृत्य के समय, संगीत के समय यदि बह अपने हाथ से उस भ्रमर को उड़ाये तो उसकी उस नृत्यकलायें कुछ अंतर आ सकता है । तो उस नुत्यकारिणी ने उस संगीत की ही कला में उस गाने के भीतर ही ऐसी श्वास भरी आवाज छोड़ी कि वह भ्रमर अपने आप शरीर पर से उड़ गया । इस कला को भी वह अंधा पहिचान गया याने जो जिस कला के विशेष जानकार होते हैं वे उस कला संबंधी अत्यंत सूक्ष्म बात को भी पकड़ लेते हैं तो उस अंधे ने नृत्यकारिणी की कला पर प्रसन्न होकर जो एक दुशाला ओढ़े हुए था नृत्यकारिणी को न्यौछावर कर दे दिया । राजा ने पूछा कि तुमने इसमें ऐसा क्या काम देखा जो अपना नया दुशाला इसको भेंट कर दिया? तब अंधे ने उस नृत्यकारिणी को नया दुशाला भेंट करने का कारण बताया । तब लोगों को विदित हुआ । तो जो ऐसी सूक्ष्म कलावों के जानकार होंगे वे ही तो इस तरह की सूक्ष्म बात बता सकेंगे । सर्वज्ञ के वैभव को सर्वज्ञ ही बता सकेंगे ।