वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 369
From जैनकोष
ध्यानसिद्धिर्मता सूत्रे मुनीनामेव केवलम् ।इत्याद्यमलविख्यातगुणलीलावलंबिनां ॥369॥
अमलगुणलीलावलंबी योगियों के ध्यान की सिद्धि –सिद्धांत में जैसा कि अभी उपरोक्त श्लोकों में कहा है ऐसे गुणों से विख्यात अथवा गुणों में प्रवृत्ति करने वाले मनुष्यों के ही ध्यान की सिद्धि मानी है । जैसे – विशेषण दिया था कि वे निष्परिग्रही हों, समस्त विद्याओं में विशारद हों, मंद कषायी हों, निर्मल हों आदिक गुणों करके युक्त मुनियों के ही ध्यान की सिद्धि होती है । ध्यान में ज्ञान और चारित्र दोनों का समन्वय है और सम्यग्दर्शन तो है ही । ध्यान नाम है एक और चित्त के रुक जाने का । उत्तम ध्यान में उपयोग आत्मा के सहज स्वभाव की ओर ठहर जाता है, तो ज्ञान बिना तो ध्यान होता ही नहीं है । और, उस जानन क्रिया का जो ठहरना है वह चारित्र है । ध्यान किसकी पर्याय है, यह यदि पूछा जाय तो जिस दृष्टि से उत्तर दें उस दृष्टि से समाधान मिलता है । ध्यान ज्ञान का परिणमन है यों कह लीजिए अथवा चारित्र का परिणमन है यों कह लीजिए । फिर भी मुख्यता से ध्यान को चारित्र का परिणमन कहा है । जो ज्ञानी हैं, सदाचारी हैं, स्वरूपाचरण वाले हैं ऐसे साधु संतों
के ध्यान की सिद्धि कही गयी है ।