वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 46
From जैनकोष
जीवितव्ये सुनि:सारे नृजन्मन्यतिदुर्लभे।
प्रमादपरिहारेण विज्ञेयं स्वहितं नृणाम्।।46।।
प्रमादपरिहार का कर्तव्य― यह मनुष्यजन्म अत्यंत दुर्लभ है और यह जीवन नि:सार है। ऐसी अवस्था में प्रमाद का परित्याग करके मनुष्यों को अपना हित करना चाहिये। एक तो यह मनुष्यजन्म दुर्लभ है तो कोई यों सोचे कि मनुष्यजन दुर्लभ है, बहुत दिनों में मिल पाया है तब यहाँ खूब सुख लूटना चाहिये तो साथ ही यह भी बताया है कि यह जीवन नि:सार है। यदि इस समागम से उपेक्षा करके स्वहित में लगा जाय तो ऐसी बात सुगमता से बन सकना मनुष्यजन्म में होती है। अत: इस मनुष्य जीवन में आत्महित का उपाय करना यह एक बुद्धिमानी का काम है।