वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 471
From जैनकोष
पंच पंच त्रिभिर्भेदैर्यदुक्तं मुक्तसंशयै: ।भवभ्रमणभीतानां चरणं शरणं परम् ॥471॥
मुक्ति का उपाय ― गणधरदेव ने जो 13 प्रकार का चारित्र कहा ― 5 महाव्रत, 5 समिति और 3 गुप्ति, यह एक ऐसा उत्तम उपाय है कि जिसका आलंबन लेकर जीव संसार में भ्रमण से छुटकारा पा लेता है । विकल्पों से सदा के लिए छुट्टी मिल जाना इसी का ही तो नाम मोक्ष है। तो परपदार्थों के लगाव वाले जितने काम हैं, आरंभ हैं, व्यापार है, स्नेह है, व्यवस्था है तो ये सब विकल्पों से छुटकारा दिलायेंगे क्या ? सत्संगता, निष्परिगृहता, अध्यात्मधुन, स्वतंत्र एकाकी रहना, अपने आपकी ही दृष्टि से रहना ये सब विकल्पों से छुट्टी पा लेने के उपाय हैं । तो ये बातें इन 13 प्रकार के चारित्रों से मिलती हैं । जिसे उत्तम ध्यान चाहिए उसको अपना जीवन कैसा बनाना उचित है ? तो उसको सीधा एक शब्द में बता दें, कि 13 प्रकार का चारित्र धारण करके जीवन बिताए तो उसे वह ध्यान प्राप्त होगा जिस ध्यान से मुक्ति मिलती है । जो मुनि संसार के भय से भयभीत हैं वे इन चारित्रों का पालन करने से निर्भय हो जाते हैं । यह सम्यक्चारित्र एक उत्तम शरण है, अत: ध्यान के इच्छुक योगीश्वर पुरुष इस सम्यक्चारित्र के पालन में पूर्णतया सावधान रहते हैं ।