वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 491
From जैनकोष
प्रमाणीकृत्य शास्त्राणि यैर्वध: क्रियतेऽधमै: ।सह्यते परलोके तै: श्वभ्रे शूलाधिरोहणम् ॥491॥
हिंसा के उपदेशकी को नरक की प्राप्ति ― जिन अधमपुरुषों ने शास्त्रों को प्रमाण दे देकर वध करने में धर्म बताया है अथवा जो वध करते हैं वे मृत्यु होने पर नरक की शूली पर चढ़ाये जाते हैं । तो जो अज्ञानीजन शास्त्रों का प्रमाण दे देकर कि अमुक शास्त्र में, पुराण मं यज्ञ के समय जीवबध करना लिखा है और वह ईश्वर का धर्म है इसलिए पशुवध करना चाहिए, यों शास्त्रों का प्रमाण दे देकर जो जीववध करने में प्रोत्साहन देते हैं वे पुरुष अत्यंत अधर्मी हैं । पाप कितना बुरा होता है कि उसकी बात करने में भी दिल काँपता है । और तो जाने दो, यदि कोई पुरुष यह कहे अपने ही कुटुंबीजनों से कि तुम्हारे लिए हम बुरा पाप करते हैं, दूसरों को बहुत सताते हैं सो तुम हमारे आधे पाप बाँट लोगे ना ॽ तो वे तो यही कहेंगे कि हम तो पाप नहीं बाटेँगे । तो समझ लीजिए कि पाप कितना बुरा होता है ॽ और फिर जो पुरुष कुछ पढ़ा लिखा हो और वह शास्त्रों में ऐसा गंदा लेख लिख जाय कि जिससे पशुवध में प्रोत्साहन मिले तो उसने कितना पाप किया ॽ उसके फल में नरक की शूली पर चढ़ाने जैसे कठिन दु:ख भोगने पड़ते हैं ।