वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 562
From जैनकोष
प्रसन्नोन्नतवृत्तानां गुणानां चंद्ररोचिषाम् ।संघातं घातयत्येव सकृदप्युदितं मृषा ॥562॥
एक बार भी असत्य प्रलाप से राज वसु को नरक की प्राप्ति ― कोई मनुष्य एक बार भी झूठ बोल दे तो बड़े-बड़े ऊँचे गुणों के समूह को भी नष्ट कर देगा । एक राजा वसु हुए हैं जो सत्य बोलने में बड़े प्रसिद्ध थे । उनके सत्य बोलने के प्रताप का वर्णन ऐसा आता है कि उनका सिंहासन भी पृथ्वी से कुछ अधर रहता था । लेकिन एक बार जब पर्वत और नारद का विवाद हुआ तो नारद का कथन था कि अजै: अस्तव्यं, जिसका अर्थ है जो डगे नहीं ऐसे पुराने धान से यज्ञ करना चाहिए और पर्वत का कहना था कि अज मायने बकरे से यज्ञ करना चाहिए । इसका निर्णय करने के लिए वसु राजा को दोनों ने स्वीकार किया । पर्वत की माँ राजा वसु के पास पहुँची । कहने लगी कि हम तुमसे गुरु दक्षिणा लेने आई हैं, क्या तुम दक्षिणा दोगे ॽ हाँ हम देंगे । फिर पर्वत की माँ ने सारा कथन सुनाया और कहा कि तुम यह कह देना कि जो पर्वत कहता है सो ठीक है । तो जब विवाद चला तो राजा वसु ने कह दिया कि जो पर्वत कहता है सो ठीक है । यों एक बार झूठ बोलने के प्रताप से उसका सिंहासन जमीन में धस गया, वसु का प्राणांत हुआ और नरक गया । एक बार असत्य बोलने का परिणाम यह हुआ । बहुत से लोगों को असत्य बोलने की प्रकृति पड़ जाती है ।
असत्य समागमों से मुख मोड़ो ― जगह-जगह असत्य बोलते हैं, पर उन्हें यह पता नहीं कि असत्य बोलने से अपना यह आत्मदेव ढका रहता है, परमात्मतत्त्व के दर्शन नहीं होते हैं । जिसे अपने निराकुल आत्मस्वरूप का भान नहीं है वह कहाँ दृष्टि लगाकर संसार के इन कठिन संकटों को दूर करे ॽ असत्य भाषण से दूर रहें और असत्य जो ये समागम हैं इन समागमों का भी हठ न करें, इनमें ममता न करें, जो हैं सो ठीक हैं, उनके ज्ञाता दृष्टा रहें ।