वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 565
From जैनकोष
महामतिभिर्निष्ठयूतं देवदेवैर्निषेधितम् ।असत्यं पोषितं पापैर्दु:शीलाधमनास्तिकै: ॥565॥
असत्यवचन थूक के सदृश ― देखो बड़े-बड़े बुद्धिमान पुरुषों ने तो असत्य भाषण को थूक की नाईं दिया, जैसे थूक गंदी चीज है तो लोग बेरहमी से थूक देते हैं, कोई इस थूक पर दया नहीं करता कि इसे धीरे से थूकें, कहीं थूक को कष्ट न पहुँचे । लोग तो किसी तक्के से बेरहमी से थूक देते हैं, तो जैसे लोग थूक को बेरहमी से त्याग देते हैं ऐसे ही बुद्धिमान पुरुष असत्य वचनों को बेरहमी से त्याग देते हैं । प्रभु वीतराग सर्वज्ञदेव ने तो असत्य भाषण का निषेध किया । लेकिन जो नीच पुरुष हैं, नास्तिक हैं, पापी हैं, अज्ञानी हैं वे इन असत्य वचनों का आदर करते हैं, उनका महत्त्व देते हैं, उनका प्रयोग करते हैं । महापुरुष तो सत्य वचनों की प्रशंसा करते हैं ।
नीच पुरुषों के असत्य का आदर ― नीच लोगों की गोष्ठी में देख लो कोई धोखेबाजी का काम कर लिया तो कितनी कलापूर्वक अपने उस कार्य की प्रशंसा करते हैं । मैंने अमुक को यों धोखा दे दिया । जैसे रेल में सफर करते हैं नीच लोग, बिना टिकेट के चलते हैं तो टिकेट चेकर जब पास आता है तो किसी तरह छिपकर इधर उधर निकल जाते हैं या उस टिकेट चेकर को एक अपनी शान सी दिखाकर पास से निकल जाते हैं । तो असत्यवादी पुरुष इन असत्यवचनों का आदर करते हैं, पर विवेकी पुरुष इन असत्य वचनों का परिहार करते हैं । वे असत्य वचन त्यागने योग्य हैं ।