वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 616
From जैनकोष
प्रथमे जायते चिंता द्वितीये द्रष्टुमिच्छति।
तृतीये दीर्घनिश्वासाश्चतुर्थे भजते ज्वरम्।
पंचमे दह्यते गात्रं षष्ठे भुक्तं न रोचते।
सप्तमे स्यान्महामूर्च्छा उन्मत्तत्वमथाष्टमे।।
नवमे प्राणसंदेहो दशमे मुच्यतेऽसुभि:।
एतैर्वेगै: समाक्रांतो जीवस्तत्त्वं न पश्यति।।
कामदष्ट प्राणी के सर्पदष्ट प्राणी के वेगों से भी अधिक और भयंकर वेग- कामवेदना से जो मानसिक व्यथा का वेग उत्पन्न होता है उस संबंध में कह रहे हैं कि सर्प से काटे हुए प्राणी के तो 7 ही वेग होते हैं पर कामरूपी सर्प से डसे हुए जीव में 10 वेग होते हैं जो बड़े भयानक हैं। किसी प्राणी को सर्प डस ले तो लोगों ने देखा भी होगा और प्रसिद्ध बात है कि उसके 7 बार कुछ नई-नई दशा बेहोशी की बनती है। किसी वेग में बेसुध होकर कुछ अकबक बोलने लगता है। यों सर्प के डसे हुए प्राणी के 7 वेग होते हैं परंतु कामरूपी सर्प से डसे हुए प्राणी के 10 वेग होते हैं। जिनके चित्त में मन से उत्पन्न हुई काम संबंधी वेदना उठती है उन पुरुषों के ये 10 प्रकार के वेग होते हैं। अर्थात् ऐसी 10 स्थितियाँ होती हैं जिन स्थितियों में चढ़ाव चलता रहता है और अंत में इस मनुष्य का मरण हो जाता है। वे 10 वेग कौनसे हैं, इसे अब क्रमश: बतलाते हैं।