वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 617
From जैनकोष
काम का प्रथमवेग संपर्कचिंता- जिस पुरुष के काम उद्दीप्त हुआ है उसके पहिला वेग तो होता है चिंता। कामवासनारूपी सर्प ने जिसे डसा है, जिसके कामवेदना होती है, इच्छा होती है ऐसे प्राणी को पहले तो चिंता होती है। अब इस वेग को मनुष्यों पर घटाया जा रहा है। कामवेग पुरुष और स्त्री दोनों में संभव है तो दोनों में अर्थ समझते जाना। यहाँ घटा रहे हैं पुरुषों पर। जिस मनुष्य को काम इच्छा जगती है उसको पहले चिंता होती है कि अमुक स्त्री का संबंध कैसे हो?
काम के वेग का एक पौराणिक उदाहरण- कभी पुराण चरित्र में सुना ही होगा कि जब नारद जनक के घर गये तो उस समय जनक की पुत्री सीता दर्पण को देखकर अपने केश सँभाल रही थी। बीच में आ गए नारद। तो नारद का स्वरूप बाल बिखरे हुए एक चद्दर ओढ़े सितार लिए हुए था। ऐसी दर्पण में उनकी छाया पड़ी। उस छाया को देखकर सीता भयभीत हुई और एकदम से चिल्लाकर वह घर के भीतर चली गयी। उस घटना से नारद जी ने अपना अपमान समझा। नारद ब्रह्मचर्य के अधिकारी हुआ करते हैं, कौतूहलप्रिय होते हैं। नारद को रानियों के आवास में भी जाने का अधिकार रहता है। राजागण उन्हें अच्छी दृष्टि से देखते हैं। किसी को उनके प्रति कोई शंका नहीं रहती। वे अपनी कौतूहलप्रियता में कभी किसी का भला करा देते हैं और जिस पर क्रोध आ जाय उसका बुरा करा देते हैं। तो नारद को उस घटना को देखकर बहुत क्रोध आया और मन में ठान लिया कि हम इस बेटी को सजा देंगे। तब क्या उपाय रचा कि सीता का एक बहुत सुंदर चित्र बनवाया और उसे ले जाकर विद्याधर के नगर में जहाँ सीता का भाई भामंडल रहता था, जन्म से जो हरा गया था। भामंडल के आगे पीछे कहीं जहाँ वह रहता था चलता फिरता था, वह चित्र डाल दिया और नारद किसी पेड़ पर जाकर बैठ गये। जब भामंडल ने उस चित्र को देखा तो एकदम वह कामव्यथित हो गया, उसे क्या पता था कि यह मेरी बहिन सीता का चित्र है। उस चित्र की सुंदरता देखकर और अनुमान करके भामंडल का चित्त काम से व्यथित हुआ और उसके चिंता उत्पन्न हुई, इसका संपर्क कैसे हो? तो काम-सर्प से डसे हुए प्राणी को प्रथम वेग चिंता का उत्पन्न होता है। फिर आगे क्या हुआ, यह कथा तो आगे की है। आखिर उस भामंडल के और और वेग हुए, सीता से विवाह करने के लिए ढूँढ़ने के लिए वह गया भी, पर रास्ते में कुछ जातिस्मरण होने से उसे बोध हुआ कि यह तो हमारी बहिन सीता का चित्र है, फिर उस संकल्प को छोड़ दिया। तो काम से डसे जाने पर प्रथम वेग तो होता है चिंता।
काम की द्वितीय वेग देखने की इच्छा- काम के द्वितीय वेग में उस कामव्यथित पुरुष को देखने की इच्छा होती है और देखने की इतनी तीव्र इच्छा जग जाती है कि वह अपने को सँभाल नहीं पाता। जैसे अंजना सुंदरी का पवनंजय से विवाह निश्चित हो गया। विवाह के तीन दिन शेष रहे लेकिन यह दूसरा वेग, देखने की इच्छा इतनी तीव्र जगी कि उसने अपने मित्र से कहा कि अब हमारे प्राण नहीं रह पाते हैं, अंजना को देखने में ही प्राण रहेंगे मित्र ने बहुत समझाया कि दो तीन दिन धैर्य रखो विवाह का निश्चय तो हो ही चुका है लेकिन वह न मान सका और मित्र के साथ ही रात्रि को चल उठा। तो वह उस वेग में अपने को सँभाल तो न सका। फिर क्या हुआ यह बात आगे की है, लेकिन देखना यहाँ यह है कि काम के उद्दीपन होने पर चिंता के बाद द्वितीय वेग देखने की इच्छा का हो जाता है।
काम का तृतीय वेग लंबी निश्वासों का चलना- इस कामरूपी सर्प से डसे हुए मनुष्य के तीसरे वेग में लंबी-लंबी श्वासें निकलने लगती हैं। द्वितीय वेग में तो देखने की इच्छा हुई थी, देख पाया हो या न देख पाया हो अथवा देख ही न पाया, अब तीसरे वेग में बड़ी बड़ी श्वासें लेता है और जब कोई बड़ी चिंता और बड़ा सदमा पहुँचता है तो उस स्थिति में यह होने लगता है हाय ! संपर्क न हुआ, देख न पाया, ऐसी कल्पनाओं का साकाररूप श्वासों का निकलना होता रहता है। जैसे कभी किसी को देखा होगा कि कोई बड़ी चिंता में बैठा हो- चाहे किसी बात की चिंता हो तो उस चिंता में उसकी लंबी श्वासें निकलने लगती हैं। तो काम के तृतीय वेग में यह मनुष्य दीर्घ श्वासें लेता है।
काम का चतुर्थ वेग ज्वर- जब काम का चतुर्थ वेग आता है तो उस चतुर्थ वेग में ज्वर आ जाता है। भला चिंता हुई, देखने की इच्छा हुई, दीर्घ श्वांसें खिंचने लगी, इतना तीव्र अटपट बिना जड़ मूल का आक्रमण होता है तो उसमें ज्वर जैसी बात आना कोई असंभव तो नहीं। तो कामव्यथा की पीड़ा से चतुर्थ वेग में ज्वर हो जाया करता है।