वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 620
From जैनकोष
शीलशालमतिक्रम्य धीधनैरपि तन्यते।
दासत्वमंत्यजस्त्रीणां संभोगाय स्मराज्ञया।।
संकल्पानुसार कामवेगों की हीनाधिकता- ये कामसंबंधी वेग किसी को 10 आते हैं, किसी को कुछ थोड़े रह जाते हैं, किसी को मंद होते हैं। तो यों संकल्प के वश से कामज्वर के प्रकोप के तीव्र, मंद, मध्यम होने से वेग भी अनेक प्रकार के हो जाते हैं। अतएव सबमें ये एक से ही वेग हो यह नियम नहीं है। लेकिन जिसमें अधिक कामासक्ति है उसका अधिक से अधिक क्या अनर्थ हो जाता है इस बात को इस वेग के ढंग में समझाया गया है। कामी पुरुष की यह स्थिति होती है कि प्रथम चिंता से प्रारंभ करके अंत में अपने प्राणों को भी गंवा देता है।