वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 623
From जैनकोष
वित्तवृत्तबलस्यांतं स्वकुलस्य च लांछनम्।
मरणं वा समीपस्थं न स्मरार्त्त: प्रपश्यति।।
कामव्यथा से श्रुत, सत्य व धैर्य का निरोध- जब कामव्यथा उत्पन्न होती है तो वह जीव के बहुत दिनों से पाले गये चारित्र का भी विनाश कर देती है। एक इस मनोज वेदना से इतना विह्वल हो जाते हैं प्राणी कि जो उचित काम है शास्त्र का अध्ययन, धैर्य का धारण, सत्यसंभाषण ये सब भी उसके नष्ट हो जाते हैं अर्थात् कामवश ऋषिजन भी अपने चारित्र का विनाश कर लेते हैं और जो जिस पद में है उस पद के योग्य भी धर्मपालन का पात्र नहीं रह पाता, ऐसा यह निर्मूल कामव्यथा का प्रभाव है।