वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 817
From जैनकोष
वास्तु क्षेत्रं धनं धान्यं द्विपदाश्च चतुष्पदा:।
शयनासनयानं च कुप्यं भांडममी दश।।
दशविद बाह्य परिग्रहों में वास्तु और क्षेत्र परिग्रह- बाह्य परिग्रह 10 हैं। प्रथम तो घर, दूसरा खेत, तीसरा धन, चौथा धान्य, 5 वां द्विपद, 6 वां चतुष्पद, 7 वां शयनासन, 8 वां यान, 9 वां कुप्य और 10 वां भांड। कहीं दूसरी जगह से भी 10 भेद कहे हैं, पर सब चीजें आ जायें यही भेद का मतलब है। इसमें भी सब परिग्रह आ गए। प्रथम तो घर परिग्रह है, क्योंकि इस घर से लोगों को ममता रहती है, घर को बनाते हैं, सजाते हैं, उसके लिए कितने-कितने उपक्रम करते हैं, यह घर बाह्य परिग्रह है और यह घर इतना बड़ा परिग्रह है कि अगर खुद के पास घर न हो तो वह अपने को रीता सा मानता है। और घर स्वयं का हो, उसमें बसता हो तो उसमें वह अपने को समझता है कि मैं कुछ हूँ। यह घर परिग्रह प्रथम नंबर पर रखा गया है। दूसरा परिग्रह बताया खेत। चाहे वह खेत अपने स्वामित्व में हो, चाहे केवल लगान पर हो, चाहे किसी प्रकार साझे में हो, पर जिसमें जितना ममत्वभाव है वह सब वहाँ परिग्रह है, तो दूसरा परिग्रह है खेत।
धन धान्य परिग्रह- तीसरा परिग्रह है धन। धन में स्वर्ण, चाँदी, रकम, सभी चीजें आ जाती हैं। फिर है धान्य परिग्रह। धान्य में सब अनाज आ गए। देखिये धान्य शब्द यद्यपि चावल वाले धान का पर्यायवाची है परंतु धान्य कहकर सब अनाजों का नाम आ जाता है। जितनी किस्म धान्य में मिलेंगी उतनी किस्म और में न मिलेंगी। साहित्य के ग्रंथों में जहाँ शस्यामल भूमि का वर्णन किया है वहाँ धान की प्रमुखता का वर्णन किया है। यह एक चिरकाल से परंपरा से चला आया हुआ भारत के एक विशेष अनाजों में से प्रमुखता रखता है। इससे धान्य सभी अनाजों का नाम समझियेगा। वैसे कोई रात का अनाज छोड़े हुए है तो उनमें कुछ बँटवारा कर लेते कि चलो तिल अनाज नहीं होता तो तिल के लड्डू खा लें, अनाज का त्याग किया गया है तो उसका दोष न लगेगा। राजगिरा, चौलाई आदिक ऐसी चीजें हैं कि जिन्हें लोग अनाज नहीं मानते, पर कोई मनुष्य इनके भी खाने का त्याग कर दे तो वह झट समझ जायगा कि सब एक ही बात है। सब धान्य में शामिल हैं। जब किसी यज्ञ पूजन में 7 प्रकार के धान लेते हैं इस प्रकार का वर्णन करें तो उनमें तिल भी लगाते हैं तो ये सब खेती करके और इस ढंग से उपजाये हुए ये सब धान्य हैं। धान्य भी अनेक प्रकार के हैं, कितने ही नाम तो यहाँ के लोग भी न जानते होंगे। कोदो, समा, कावनी, फिकार, रोटका, चीना, आदिक अनाजों को तो शायद कुछ कुछ लोग भी न जानते होंगे। मोटे अनाज भी बहुत से हैं गेहूँ, चना, मटर, मसूर, मूंग, उड़द, राहर, ज्वार, बाजरा आदिक। इन सब अनाजों का परिग्रह है धान्य परिग्रह।
द्विपद चतुष्पद परिग्रह- एक विकट परिग्रह है द्विपद का। जिसके दो पैर हों वह द्विपद हुआ। द्विपद में सभी पशु पक्षी आ गए। ये पशु पक्षी भी तो लोगों के बहुत बड़े परिग्रह बन जाते हैं। उनका व्यापार करते, उन्हें खिलाते पिलाते, उन्हें अपना मानते। तो वैसे देखो तो मनुष्य, पशु, पक्षी सभी में चार साधन होते हैं, हाथ पैर जैसे। ये पक्षी अपने दोनों पंख फैलाकर जैसे उड़ जाते हैं, एक स्थान से दूसरे स्थान को भाग जाते हैं ऐसे ही यह मनुष्य भी अपने दोनों हाथ चलाये बिना कहीं भाग नहीं सकता। वह भी हाथों को फैलाकर लेफ्ट राइट करता हुआ आगे भागता चला जाता हैं। कोई अगर अपने हाथों को न चलाये, अपने हाथों को कमर में बाँध ले तो वह भाग दौड़ नहीं सकता। तो इस परिग्रह के प्रकरण में बता रहे थे कि दोपाया, चौपाया सभी परिग्रह हैं। फिर परिग्रहों में उपलक्षण से शेषपरिग्रह लगा लेना चाहिए। द्विपद, चतुष्पद परिग्रह में मनुष्य, पशु, पक्षी सभी को ग्रहण कर लेना।
शयनासन यान परिग्रह- शयनासन परिग्रह में देखो कितना-कितना कमरों को सजाया जाता है। किसी-किसी आफीसर के यहाँ देखो तो कमरे में जितना शयनासन का परिग्रह मिलेगा उतना तो रसोईघर में भी न मिलेगा। कितनी-कितनी प्रकार की कुर्सियाँ, मेज, कितनी ही प्रकार की सजावट की अन्य चीजें ये सब शयनासन परिग्रह हैं। यान परिग्रह में देखो- यान मायने सवारी। सवारी के परिग्रह में बैल, घोड़ा, साइकिल, रिक्शा, तांगा, मोटर, फटफट आदि आ जाते हैं।
कुप्य भांड परिग्रह- वस्त्र परिग्रह में देखो कितने-कितने प्रकार के वस्त्र पहिने जाते हैं। कुछ वस्त्र तो ऐसे होते हैं कि जिनमें किसी एक छोर में आग लग जाये तो तुरंत सारा कपड़ा जल जाता है और साथ ही वह शरीर से चिपकता जाता है। जैसे लाइलोन के कपड़े इसी ढंग के होते हैं। और, कीमती कपड़ों से शायद स्वास्थ्य को भी फायदा न होता होगा। जैसे खादी के कपड़े गर्मी में पहिन लो तो लू लगने का काम बहुत कम रहता है और रेशमी कपड़ों के पहिनने से तो शरीर का स्वास्थ्य भी बिगड़ता है और साथ ही कहीं बैठना हो तो सहसा बैठ भी नहीं सकते। मंदिर में या संत पुरुषों के सामने नमस्कार करने में तकलीफ भी पड़ती होगी क्योंकि कपड़ों के बिगड़ने का डर रहता है तो सादे मोटे कपड़े पहिनने से विनय गुण भी रह सकता है। अच्छे कीमती कपड़े पहिनने में विनय गुण भी नहीं है, और फायदा क्या? कुछ भी नहीं। केवल दूसरों को यह जताने के लिए कि हम भी अच्छे हैं, हमारा पोजीशन बढ़िया है। केवल इतना मात्र जताने के लिए इतना आडंबर किया जाता है, और, अन वस्त्रों के सिलाई का भी एक व्यर्थ का परिग्रह बन गया है। जितने का कपड़ा हो कहो उतनी सिलाई देनी पड़े। आजकल तो ऐसे फैशन के कपड़े चले हैं कि कहो कपड़े से भी अधिक सिलाई हो जाय। तो ये सब बाह्यपरिग्रह हैं वस्त्र के। 10 वां परिग्रह है भांड बर्तन। भांड शब्द पुराना है, अब भी लोग बर्तन भांडे कहा करते हैं। लोहा, पीतल, ताँबा, काँसा, इन सबके बने हुए जो बर्तन हैं। वे सब भांडे बर्तन हैं। उनका भी एक परिग्रह है। ये 10 प्रकार के परिग्रह हैं। जिनका आश्रय करके, जिनका विकल्प बनाकर यह जीव अपने अंतरंगंग परिग्रह का पोषण करता है।