वर्णीजी-प्रवचन:पंचगुरु भक्ति - श्लोक 6
From जैनकोष
जिनसिद्धसूरिदेशकसाधुवरानमलगुणगणोपेतान ।
पंचनमस्कारपदैस्त्रिसंध्यमभिनौमि मोक्षलाभाय ।।6।।
मोक्षलाभ के लिये पंच परमगुरुओं का अभिवंदन―पंच परमेष्ठियों के वर्णन के बाद अब यहाँ उपासक ऐसी भावना कर रहा है कि जिनेंद्रदेव सिद्ध परमेष्ठी आचार्य प्रभु उपाध्याय परमेष्ठी और साधुजन जो निर्मल गुण गणों से युक्त हैं उनको मैं पंच नमस्कार पदों के द्वारा तीनों संध्याओं में मोक्ष की प्राप्ति के लिए स्तवन करता हूँ । यहाँ तीनों संध्यावों का मतलब है प्रातःकाल, मध्याह्नकाल और सायंकाल से अथवा जब चाहे, रात दिन प्रत्येक घड़ी। ऐसे तीनों समय पंच नमस्कार पद के द्वारा पंच गुरुवों का स्तवन करता हूँ यह उपलक्षणार्थ है । पंचनमस्कार मंत्र प्रसिद्ध ही है । जब बहुत भक्तिपूर्वक प्रभुवों के, परमेष्ठियों के गुणों का स्तवन करते हुए बहुत धीरे-धीरे णमोकार मंत्र का स्मरण किया जाता है तो आत्मा में ज्ञान का प्रकाश होता, परमेष्ठियों में गुणों का अनुराग होता और उस काल ऐसा विशिष्ट पुण्यबंध होता है जिसके उदय में सर्व विपदायें दूर हो जाती हैं । प्रथम तो विपत्ति है कहां? अज्ञानरूप उपयोग बनाने को विपत्ति बताया जाता है । जहाँ सही ज्ञान बना कि समस्त विपदायें टल जाती हैं । इस कारण अपने ज्ञान को सही रखना एक यही सही काम जीवन में पड़ा हुआ है । ज्ञान सही रखने का सुगम उपाय शुद्ध आत्माओं की भक्ति है । इससे और आगे का उपाय शुद्ध आत्मतत्त्व का ज्ञान ध्यान है ।
आत्मोद्धार के सरल प्रथम उपायभूत शुद्धात्माओं के वंदन में निष्प्रमादता का अनुरोध―हम आत्मोद्धार के इन सब उपायों को न छोड़ें । हम जिनेंद्र, सिद्ध, सूरि, पाठक, साधु इन पंच परमेष्ठी के गुणों को स्मरण करें । णमोकार मंत्र का शुद्ध भावपूर्वक उच्चारण करके अपने अंत: आनंद का विकास करें, यही मात्र हम आपका शरण हैं । और यहाँ यही भावना की जाती है कि तीनों समय अर्थात् जब चाहे रात-दिन प्रत्येक घड़ी इन पंचपरमेष्ठियों का वंदन करें और स्तवन करके, उच्चारण करके बड़े शुद्ध भाव से उनके गुणों को भी विचारे । जैसे अरहंत कहा तो आकाश में समवशरण में विराजमान वीतराग सर्वज्ञ शुद्ध ज्ञानपुंज दृष्टि में आये । सिद्ध कहा तो लोक के अग्रभाग पर विदेह ज्ञानपुंज का स्मरण हो । आचार्य कहा तो सिद्ध समूह के बीच बड़े निर्मल विरक्त साधु का ध्यान करें । उपाध्याय कहा तो ज्ञान का जहाँ महान् प्रकाश है, और शिष्य वर्ग को बड़ी करुणा से तत्त्व का जो अध्ययन कराते हैं उस घटना का ध्यान करें । साधु नाम कहा तो गुफावों में, नदी के तीर पर किसी भी जगह तपश्चरण करते हुए साधु का ध्यान करें, । यों पंच परमेष्ठी के स्वरूप का पंच नमस्कार पदों के द्वारा मोक्षलाभ के लिए तीनों समय, सर्व समय स्तवन करता हूँ, और यह स्तवन केवल बहिरंग स्तवन नहीं, किंतु जब उनके ज्ञानानंद गुणों से अपने उपयोग में मिलकर एक रूप से ध्यान कर रहे है तो गुणों में उपयोग ऐसा अभेद बने कि उन पंचपरमेष्ठियों का अभेद वंदन हो जाय । इस प्रकार उस चैतन्यज्योति में अपनी चैतन्यज्योति को मिलाकर एक अभेद चैतन्यरस का स्वाद लेना यही पंच परमेष्ठी के गुणवंदन का और उनके, गुण स्तवन का वास्तविक फल है ।