वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 136
From जैनकोष
परिधय इव नगराणि व्रत नि किल पालयंति शीलानि ।
व्रतपालनाय तस्माच्छीलान्यपि पालनीयानि ।।136।।
अणुव्रत की रक्षा के लिये सात शीलों की पालनीयता―जैसे नगर की रक्षा के लिये नगर के चारों ओर खाइयां खोदी जाती हैं कोट बनाई जाती है तो उससे नगर की रक्षा रहती है, कोई शत्रु नगर पर आक्रमण नहीं कर सकता है । इसी प्रकार इस अणुव्रत की रक्षा के लिये अणुव्रत के चारों ओर सात शीलों का नियम लिया जाता है, वे 7 शील आगे आवेंगे, पर यहाँ यह समझना चाहिये कि व्रत की रक्षा के लिये अणुव्रतों का पालन करना चाहिये । यह शील एक बाढ़ है । जैसे खेतों के अन्न की रक्षा बाढ़ लगाने से है ऐसे सी अणुव्रतों की रक्षा शीलों से है । वे शील क्या हैं, उनको क्रम से कहते हैं ।