वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 151
From जैनकोष
सामायिकसंस्कारं प्रतिदिनमारोपितं स्थिरीकर्तुम् ।
पक्षार्द्धयोर्द्धयोरपि कर्तव्योऽवश्यमुवास: ।।151꠰।
प्रोषधोपवास शिक्षाव्रतनामक पंचम शील का वर्णन―प्रतिदिन अंगीकार किए हुए सामायिकरूप व्रत का स्थिर करने के लिए अष्टमी और चतुर्दशी के दिन 149 उपवास रखने का अभ्यास भी करना चाहिए । यह श्रावकों के बारह व्रतों का वर्णन है । चार शिक्षाव्रतों में पहिला सामायिक व्रत शिक्षाव्रत है, उसका वर्णन किया । अब दूसरा प्रोषधोपवास व्रत है । इसमें अपने परिणामों की विशेष निर्मलता करने के लिए सामायिक का संस्कार बढ़ाने के लिए उपवास करना चाहिए । उपवास का प्रयोजन बताया है समतापरिणाम बढ़ाने के लिए करना चाहिए । अंदर में रागद्वेष के परिणाम न जगें, उनके स्थिर करने के लिए अष्टमी और चतुर्दशी का उपवास करना चाहिए ꠰ उपवास करने की सामर्थ्य नहीं है और चूंकि नियम लिए हुए हैं उपवास का, इसलिए उपवास करना पड़ता है, ऐसा किसी का भाव है तो समझो कि उसका उपवास उपवास नहीं है । उपवास किया जाता है कषायें दूर करने के लिए व अपने स्वरूप में लीन होने के लिए । तो अष्टमी और चतुर्दशी ये अनादिनिधन पर्व हैं और बाकी पर्व जैसे रविव्रत, सुगंधदशमीव्रत वगैरह तो कभी किसी कारण से बने हैं मगर अष्टमी और चतुर्दशी के पर्व अनादिनिधन हैं । ये कभी नहीं बनाये गए, अनादिकाल से चले आ रहे हैं । अष्टान्हिका पर्व के 8 दिनों में नंदीश्वर द्वीप देवगण जाते हैं और पूजन वंदन करते हैं, तो ये आठैं चौदस की परंपरा अनादिकाल से है, क्योंकि मोक्षमार्ग भी अनादि से चल रहा है । श्रावकाचार, मुनियों का आचार भी अनादि से चल रहा है । वे पंचम महाव्रतों का पालन करें, आठैं चौदस का उपवास करें, सामायिक के संस्कार को स्थिर करें इसके लिए उपवास करना चाहिये ।