वर्णीजी-प्रवचन:भावपाहुड - गाथा 37
From जैनकोष
एक्केक्कंगुलि वाही छण्णवदी होंति जाणमणुयाणं ।
अवसेसे य सरीरे रोया भण कित्तिया भणिया ।।37।।
(63) भावलिंग की प्राप्ति के बिना अनंते व्याधिमंदिर देहों की उपलब्धियां―इस जीव ने भावलिंग नहीं पाया इससे अनंत शरीर धारण करता रहा और इस शरीर में बड़ी व्याधियां सही । एक मनुष्य के शरीर में कितने घनांगुल प्रमाण क्षेत्र है । सो एक साढ़े तीन हाथ का ही शरीर लीजिए, जैसा कि आजकल होता है । तो एक हाथ में 24 अंगुल होते हैं और 24×3=72+12=84 अंगुल हुए । यह तो एक ओर की लंबाई है, और शरीर की चौड़ाई 24 अंगुल ही मानो तो 84 । 24=2016 अंगुल हुए और उसकी मोटाई नापी जाये तो मानो 10 अंगुल भी रखा तो करीब बीस हजार अंगुल प्रमाण शरीर रहा और एक-एक अंगुल में 96-96 रोग होते हैं तो सारे शरीर में कितने रोग होते हैं ? करोड़ों की संख्या में रोग निकलेंगे । ऐसे करोड़ों रोगों से भरा हुआ यह शरीर है, जिस शरीर को लोग अनंत बार ढोते फिरे । यह जीव स्वभावत: विशुद्ध ज्ञानमात्र परमात्मतत्त्व है । पर अपने आपके स्वरूप को न जानने के कारण निमित्तनैमित्तिक भाववश ये सारे उपद्रव बन गए हैं । तो इन उपद्रवों से मुक्त होना है तो उसका उपाय मात्र आत्मस्वरूप का परिज्ञान है ।