वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 4-36
From जैनकोष
दशवर्षसहस्राणि प्रथमायां ।। 4-36 ।।
पहली पृथ्वी में जघन्य स्थिति 10 हजार वर्ष की होती है । यहाँ 10 हजार वर्ष एक सागर प्रमाण स्थिति के सामने तालाब के एक बूंद की तरह है, बहुत ही कम है । नारकियों को कम से कम 10 हजार वर्ष तक नरकों में रहकर दुःख सहना पड़ता है । दुःख इतने कठिन हैं कि जिनका समाचार सुनकर हृदय काँप जाता है । वहाँ एक दूसरे के अंग के टुकड़े-टुकड़े कर डालते हैं, इतने पर भी उनका बीच में मरण नहीं होता । वे ही सब अंग फिर इकट्ठे होकर ठीक हो जाते हैं । यों अनेक बार छिदते-भिदते रहते हैं और वे पृथ्वी के दुःख सर्दी गर्मी के दुःख, बहुत प्रकार के दुःख हैं । उनको यह जीव सहता है । नारकियों की जघन्य स्थिति कहकर अब भवनवासियों की जघन्य स्थिति बतलाते हैं ।