वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 4-37
From जैनकोष
भवनेषु च ।। 4-37 ।।
भवनवासी देवों की जघन्य भुज्यमान आयु स्थिति―और भवनवासियों में भी कम से कम 10 हजार वर्ष की स्थिति होती है । इस भवनवासियों का स्थान इस राजकुमार नामक पहली पृथ्वी के तीन भाग में से पहले दो भागों में है । यहाँ ये देव अकृत्रिम भवनों में रहते है, जिनमें मनोहर चैत्यालय हैं । सर्व प्रकार का उन देवों को आराम है लेकिन परिणामों में प्रगति नहीं है । बड़े कौतूहल प्रिय होते हैं । इन्हें कमाना नहीं पड़ता, मुख से खाना भी नहीं पड़ता, इनके भूख लगने कंठ से अमृत झड़कर भूख मिट जाती है । इतने पर भी ये सदा मानसिक दुःख से दुःखी रहते हैं ऐसे भवनवासियों के देवों की कम से कम आयु 10 हजार वर्ष की होती है । अब व्यंतर देवों की जघन्य स्थिति बताने के लिये सूत्र कहते हैं ।