वर्णीजी-प्रवचन:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 110
From जैनकोष
ग्रहणविसर्गास्तरणा-न्यहष्टमृष्टान्यनादरास्मरणे ।
यत्प्रोषधोपवास-व्यतिंघनपंचकं तदिदम् ।। 110 ।।
प्रोषधोपवास व्रत के अतिचार―प्रोषधोपवास व्रत के 8 प्रथम अतिचार है बिना देखे, बिना शोधे उपकरणों का ग्रहण करना, स्वाध्याय के उपकरण शास्त्रादिक, पूजा के उपकरण बर्तन आदिक इनको बिना देखे उठाना धरना, बिना शोधे धरना उठाना यह प्रथम अतिचार है । प्रोषधोपवास में जीवदया का विशेष पालन करता ही रहता है । जीवदया तो प्रतिदिन करना ही चाहिए, पर यहाँ आरंभ आदिक कुछ नहीं कर रहे । केवल धर्मध्यान विषयक ही कुछ क्रिया चल रही है, सो उस क्रिया में उपवास की आसक्ति आदिक के कारण यदि बिना देखे शोधे चीजों को उठाये धरे तो वह अतिचार है । (2) दूसरा अतिचार है बिना देखे शोधे इन उपकरणों का धरना या हाथ पैर आदिक पसारना । अगर हाथ पैर आदिक पसारने की जरूरत पड़े तो पहले देख भाल लिया कि नीचे कहीं कोई कीड़ी या अन्य जीवजंतु तो नहीं है । बिना देखे शोधे हाथ पैर पसारना यह भी अतिचार है । (3) तीसरा अतिचार है बिना देखे शोधे वस्त्रादिक का, चटाई आदिक का धरना, उठाना बिछाना । जीव जंतु को न देखे या न शोधे, निर्जंतु जमीन है ऐसा चित्त में न जान पाया और बिस्तर बिछा दिया तो यह प्रोषधोपवास का तीसरा अतिचार है । (4) चौथा अतिचार है अनादर । उपवास में आदर न करना यह अनादर नाम का अतिचार है । एक उपवास कर भर लिया किसी प्रसंग से दुनिया को दिखाने को अथवा किसी भी भाव से कर तो लिया उपवास, पर कुछ खा नहीं सकते अब । ऐसा विकल्प आना या उपवास में जो क्रिया की जानी चाहिए धर्म वह न कर सके, ऐसे अनादर की बात चित्त में आये तो वह अनाचार नाम का अतिचार है । (5) पांचवां अतिचार है विस्मरण । उपवास के दिन पाठ करने आदि की कोई क्रिया भूल जाना या और-और बातें भूल जाना यह है विस्मरण नाम का अतिचार । ऐसे ये 5 प्रोषधोपवास के अतिचार हैं । यहाँ पर शिक्षाव्रत में देशावकाशिक, सामायिक और प्रोषधोपवास इन तीन व्रतों का वर्णन हुआ ।