वर्णीजी-प्रवचन:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 76
From जैनकोष
तिर्यक्लेशवणिज्या हिंसारंभप्रलंभनादीनां ।
प्रसव: कथाप्रसंग:स्मर्तव्य: पाप उपदेश: ।। 76 ।।
पाशेपदेशनामक अनर्थदंड का स्वरूप―ऐसे पाप कार्य का उपदेश करना जिसमें तिर्यंचों को क्लेश उत्पन्न हो, वाणिज्य में, बेचने खरीदने में हिंसा उत्पन्न हो, अन्य भी कोई हिंसा के कार्य अथवा आरंभ के कार्य या ठगने की ही बातें, इनका उपदेश करना सो पापोपदेश अनर्थ दंड है । जैसे समझाते कि भाई इस प्रकार पशुओं को मारो, दृढ़ता से बांधो, मर्मस्थान में पीड़ा करो, गाड़ी में बैल जुत रहे हैं, चलते नहीं हैं तो बताना कि इस मर्मस्थान में डंडा मारा जाय तो वह खूब चलता है आदिक स्वच्छंदता के उपदेश करना, बहुत बोझ लादने का उपदेश करना, बैलों को नपुंसक बनाना, जिसे कहते बधिया करना, उनकी नाक छेदकर नकेल डालना । तोता मैना आदिक पक्षियों को पिंजड़े में रोकने आदिक के उपदेश हैं, जिनमें तिर्यंचों को क्लेश हो उसे पापोपदेश कहते हैं । सद्गृहस्थ श्रावक तोता मैना कबूतर आदिक पक्षी न पालेगा । कौन व्यर्थ में सिरदर्द मोल ले? कभी कोई खा गया, बिल्ली ने पकड़ लिया और उनसे प्रयोजन क्या है? कोई आजीविका चलती है क्या? या धर्मसाधना में मदद देते हैं क्या? ऐसे काम न करें और ऐसी बातों का उपदेश भी न करें । यदि उपदेश करें तो वह अनर्थ दंड है, ऐसे वाणिज्य का उपदेश न करें जिसमें हिंसा का पाप हो, 6 काय के जीवों की विराधना हो वह सब हिंसा उपदेश है । यदि सद्गृहस्थ सदाचार से रहित अभिलाषा करता है तो उसके कितने ही काम छूट जायेंगे जैसे लोहे का व्यापार या भंग तंबाकू आदिक का व्यापार या गल्ले का भी व्यापार, ऐसे कितने ही व्यापार हैं जो हिंदी ग्रंथों में लिखे हैं, जहाँ कुछ चरणानुयोग का प्रकरण है वहाँ लिखा है कि वे सब काम छूट जायेंगे । कोई सोचे कि तब तो थोड़े से ही काम रह गए करने को । निर्दोष वृत्ति से चलाने की बात अगर सोचें तब तो छूट ही जायेंगे, पर आज यह भावना कम रह गई । यह तो मामूली बात रह गई । अब इसमें कुछ दोष की बात चित्त में आती भी नहीं है, बहुत साधारण है लेकिन मिलेटरी में मांस देने का ठेका देना, ऐसे-ऐसे प्रयोग भी अब करने लगे जिसके समक्ष ये कुछ भी चीज नहीं है । तो यह भले ही कुछ समय का परिवर्तन है फिर भी एकदम स्वच्छंद तो न होना चाहिए कि जैसे मांस का शराब का जिससे संबंध हो, ऐसा व्यापार करना आदिक बातें तो करता भी नहीं सद्गृहस्थ, न दूसरों को उपदेश देता है, इसके अतिरिक्त ऐसे बाग बनाओ, ऐसे खेत जोतो, इस तरह प्रक्रिया बनावो यह पाप के कार्य का उपदेश यह सब पापोपदेश है, या छल कपट करने की नीति बताना―तुम यों कहो, तुम यों करो, इस तरह की प्रवृत्ति करना यह सब पापोपदेश कहलाता हैं ऐसे अनेक प्रकार के पापरूप कथन का उपदेश करना पापोपदेश नाम का अनर्थ दंड व्रत है । अब हिंसादान नामक अनर्थ दंड व्रत का वर्णन करते है ।