वर्णीजी-प्रवचन:रयणसार - गाथा 154
From जैनकोष
रयणत्तयमेव गणं गच्छं गमणस्स मोक्खमग्गस्स।
संघो गुण संघा दो समयो खुल णिम्मलो अप्पा।।154।।
रत्नत्रय की गणगच्छरूपता―रत्नत्रय भाव ही गण है। जैसे गण, गच्छ, समूह, संघ ये मुनियों के एक साथ रहने के वर्ग हैं। तो यहाँ कह रहे कि वास्तव में गण क्या है? तो यह रत्नत्रय भाव ही गुण है, समूह है। इस में क्या समूह है? व्रत समिति गुप्ति आदिक अनेक प्रकार के भाव आना उनका पालन होना ये सब गण रूप कह जाते हैं। तो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र रूप जो रत्नत्रय भाव है वह ही गण है। गण समूह को कहते हैं। जिसमें गणना बन जाय तो इसमें गणना अपने अभिप्राय के अनुकूल कितनी ही बनाते चले जाइये। आत्मा एक है चेतना। आत्मा में दो गुण हैं―(1) ज्ञान और (2) दर्शन। अब इतने विस्तार में डिग्रियों के अनुसार बढ़ते चले तो रत्नत्रय भाव ही जीव का वास्तव में गण है और रत्नत्रय ही गच्छ है। गच्छ का धातु से अर्थ होता है जो गमन कराये, गमन में चले उसे कहते हैं गच्छ तो यह रत्नत्रय भाव ही गच्छ है, इससे भावों में विशुद्धि में गमन होता है। रत्नत्रय की संघसमयरूपता―यह रत्नत्रय भाव ही संघ है याने गणों का समूह है। गण होते हैं छोटे-छोटे। अमुक का गण है, अमुक का गण है। और वे सब गण भी इकट्ठे होकर एक संघ कहलाते हैं, तो ऐसे ही भेद और प्रभेद, आत्मा के गुणों के भेद तो हुए संघ और प्रभेद हुए गण। तो जो गुणों का समूह है सो ही यहाँ संघ है और निश्चय से यह निर्मल आत्मा ही समय है। समय शब्द का अर्थ है सम्-अय। सम मायने भले प्रकार अय मायने जाने अथवा समय मायने युगपत जो जाने और परिणमे उसे कहते हैं समय। परिणमते तो सभी पदार्थ हैं मगर यह आत्मा परिणम रहा, जान रहा, परिणमता हुआ जान रहा है इस कारण से परिणमना और जानना, ये दो ही बातें एक साथ हों उसे कहते हैं समय। तो वास्तव में समय क्या है? तो यह निर्मल आत्मा ही वास्तव में समय है। इस प्रकार इस गाथा में बताया है कि रत्नत्रय से पवित्र आत्मा में ही ये सब बातें निहारिये। ये ही गण हैं, ये ही गच्छ हैं। यहीं संघ है और यह ही वास्तविक समय है।