विस्तार सामान्य
From जैनकोष
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/131/200/9 तिर्यक्प्रचया: तिर्यक्सामान्यमिति विस्तारसामान्यमिति क्रमानेकांत इति च भण्यते।...ऊर्ध्वप्रचय इत्यूर्ध्वसामान्यमित्यायतसामान्यमिति क्रमानेकांत इति च भण्यते। =तिर्यक् प्रचय को तिर्यक्सामान्य, विस्तार सामान्य और अक्रमानेकांत भी कहते हैं।...ऊर्ध्वप्रचय को ऊर्ध्वसामान्य, आयतसामान्य वा क्रमानेकांत भी कहते हैं।
प्रमेयकमलमार्तंड/पृष्ठ 276 महेंद्रकुमार काशी—प्रत्येकं परिसमाप्तया व्यक्तिषु वृत्ति अगोचरत्वाच्च अनेक सदृशपरिणामात्मकमेवेति तिर्यक् सामान्यमुक्तम् ।=अनेक व्यक्तियों में, प्रत्येक में समाप्त होने वाली वृत्ति को देखने से जो सदृश परिणामात्मकपना प्राप्त होता है, वह तिर्यक्सामान्य है।
देखें क्रम - 6.तिर्यक प्रचय।