शीलपाहुड गाथा 22
From जैनकोष
आगे इसी का समर्थन करने के लिए विषयों के विष का तीव्रपना कहते हैं कि विष की वेदना से तो एकबार मरता है और विषयों से संसार में भ्रमण करता है -
वारि एक्कम्मि य जम्मे मरिज्ज विसवेयणाहदो जीवो ।
विसयविसपरिहया णं भमंति संसारकंतारे ।।२२।।
वारे एकस्मिन् च जन्मनि गच्छेत् विषवेदनाहत: जीव: ।
विषयविषपरिहता भ्रंति संसारकांतारे ।।२२।।
बस एक भव का नाश हो इस विषम विष के योग से ।
पर विषयविष से ग्रसितजन चिरकाल भववन में भ्रें ।।२२।।
अर्थ - विष की वेदना से नष्ट जीव तो एक जन्म में ही मरता है, परन्तु विषयरूप विष से नष्ट जीव अतिशयतया-बारबार संसाररूपी वन में भ्रमण करते हैं । (पुण्य की और राग की रुचि वही विषयबुद्धि है ।)
भावार्थ - अन्य सर्पादिक के विष से विषयों का विष प्रबल है, इनकी आसक्ति से ऐसा कर्मबंध होता है कि उससे बहुत जन्म मरण होते हैं ।।२२।।