शीलपाहुड गाथा 23
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि विषयों की आसक्ति से चतुर्गति में दु:ख ही पाते हैं -
णरएसु वेयणाओ तिरिक्खए माणवेसु दुक्खाइं ।
देवेसु वि दोहग्गं लहंति विसयासिया जीवा ।।२३।।
नरकेषु वेदना: तिर्यक्षु मानुषेषु दु:खानि ।
देवेषु अपि दौर्भाग्यं लभंते विषयासक्ता जीवा: ।।२३।।
अरे विषयासक्त जन नर और तिर्यग् योनि में ।
दु:ख सहें यद्यपि देव हों पर दु:खी हों दुर्भाग्य से ।।२३।।
अर्थ - विषयों में आसक्त जीव नरक में अत्यंत वेदना पाते हैं, तिर्यंचों में तथा मनुष्यों में दु:खों को पाते हैं और देवों में उत्पन्न हों तो वहाँ भी दुर्भाग्यपना पाते हैं, नीच देव होते हैं, इसप्रकार चारों गतियों में दु:ख ही पाते हैं ।
भावार्थ - विषयासक्त जीवों को कहीं भी सुख नहीं है, परलोक में तो नरक आदिक के दु:ख पाते ही हैं, परन्तु इस लोक में भी इनके सेवन करने में आपत्ति व कष्ट आते ही हैं तथा सेवन से आकुलता; दु:ख ही है, यह जीव भ्र से सुख मानता है, सत्यार्थ ज्ञानी तो विरक्त ही होता है ।।२३।।