शीलपाहुड गाथा 8
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि जब ज्ञान प्राप्त करके इसप्रकार करे तब संसार कटे -
जे पुण विसयविरत्ता णाणं णाऊण भावणासहिदा ।
छिंदंति चादुरगदिं तवगुणजुत्ता ण संदेहो ।।८।।
ये पुन: विषयविरक्ता: ज्ञानं ज्ञात्वा भावनासहिता: ।
छिन्दन्ति चतुर्गतिं तपोगुणयुक्ता: न संदेह: ।।८।।
जानने की भावना से जान निज को विरत हों ।
रे वे तपस्वी चार गति को छेदते संदेह ना ।।८।।
अर्थ - जो ज्ञान को जानकर और विषयों से विरक्त होकर उस ज्ञान की बारबार अनुभवरूप भावनासहित होते हैं वे तप और गुण अर्थात् मूलगुण उत्तरगुणयुक्त होकर चतुर्गतिरूप संसार को छेदते हैं, काटते हैं, इसमें संदेह नहीं है ।
भावार्थ - ज्ञान प्राप्त करके विषय कषाय छोड़कर ज्ञान की भावना करे, मूलगुण उत्तरगुण ग्रहण करके तप करे वह संसार का अभाव करके मुक्तिरूप निर्मलदशा को प्राप्त होता है - यह शीलसहित ज्ञानरूप मार्ग है ।