औपशमिक भाव
From जैनकोष
कर्मों के दबने को उपशम और उससे उत्पन्न जीव के शुद्ध परिणामों को औपशमिक भाव कहते हैं।
धवला पुस्तक 1/1,1,8/161/2
तेषामुपशमादौपशमिकः। .....गुणसहचरित्वादात्मापि गुणसंज्ञां प्रतिलभते।
= जो कर्मों के उपशम से उत्पन्न होता है उसे औपशमिक भाव कहते हैं। (क्योंकि) गुणों के साहचर्य से आत्मा भी गुणसंज्ञा को प्राप्त होता है।
अधिक जानकारी के लिये देखें उपशम - 6।