ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 248 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
दंसणणाणुवदेसो सिस्सग्गहणं च पोसणं तेसिं । (248) ।
चरिया हि सरागाणं जिणिंदपूजोवदेसो य ॥287॥
अर्थ:
[दर्शनज्ञानोपदेश:] दर्शनज्ञान का (सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान का) उपदेश, [शिष्यग्रहणं] शिष्यों का ग्रहण, [च] तथा [तेषाम् पोषणं] उनका पोषण, [च] और [जिनेन्द्रपूजोपदेश:] जिनेन्द्र की पूजा का उपदेश [हि] वास्तव में [सरागाणांचर्या] सरागियों की चर्या है ।
तत्त्व-प्रदीपिका:
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
अब, ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि शुभोपयोगियों के ही ऐसी प्रवृत्तियाँ होती हैं :-
अनुग्रह करने की इच्छापूर्वक
- दर्शनज्ञान के उपदेश की प्रवृत्ति,
- शिष्यग्रहण की प्रवृत्ति,
- उनके पोषण की प्रवृत्ति और
- जिनेन्द्रपूजन के उपदेश की प्रवृत्ति