दोस्तदिका
From जैनकोष
दक्षिण का एक नगर । यह नगर सौराष्ट्र के वर्द्धमानपुर से गिरिनार को जाने वाले मार्ग पर स्थित है । हरिवंशपुराण की रचना इसी नगरी के शांतिनाथ जिनालय में पूर्ण हुई थी । हरिवंशपुराण 66.53 द्युति― (1) मथुरा नगरी के सेठ भानु और उनकी स्त्री यमुना के छठे पुत्र शूरदत्त की भार्या । हरिवंशपुराण 33.96-99
(2) अनेक शास्त्रों के पारगामी एक आचार्य । ये राम के वनवास के समय अयोध्या में ही ससंघ स्थित थे । इनके सम्मुख भरत ने प्रतिज्ञा की थी कि राम के वन से लौटते ही वह दीक्षित हो जायगा । इन्होंने उसे संबोधित किया और धर्माचरण के अभ्यास का परामर्श दिया । सीता के वनवास से दु:खी अयोध्या का नगर-सेठ व्रजांक भी इन्हीं के पास दीक्षित हुआ था । वे स्वयं परम तपस्वी थे । आयु के अंत में ये ऊर्ध्व ग्रैवेयक में अहमिंद्र हुए । पद्मपुराण - 32.139-140, 123.86-92
(3) व्याघ्रनगर के राजा सुकांत का पुत्र । पद्मपुराण - 80.177
(4) साकेत के मुनिसुव्रत-जिनालय में विद्यमान सप्तर्षियों का अर्चक एक भट्टारक । इसके शिष्य इसे सप्तर्षियों को नमन करते देखकर असंतुष्ट हो गये थे । बाद में उसकी निर्मलता ज्ञात कर वे अपने अज्ञान की निंदा करते हुए पुन: उसके भक्त हो गये थे । पद्मपुराण - 92.22-27