मेरी मेरी करत जनम सब बीता
From जैनकोष
मेरी मेरी करत जनम सब बीता
परजय-रत स्वस्वरूप न जान्यो, ममता ठगनी ठग लीता।।मेरी. ।।१ ।।
इंद्री-सुख लखि सुख विसरानौ, पांचों नायक वश नहिं कीता।।मेरी.।।२ ।।
`द्यानत' समता-रसके रागी, विषयनि त्यागी ह्वै जग जीता ।।मेरी.।।३ ।।