मैं नूं भावैजी प्रभु चेतना, मैं नूं भावै जी
From जैनकोष
मैं नूं भावैजी प्रभु चेतना, मैं नूं भावै जी
गुण रतनत्रय आदि विराजै, निज गुण काहू देत ना।।मैं नूं. ।।१ ।।
सिद्ध विशुद्ध सदा अविनाशी, परगुण कबहूं लेत ना।।मैं नूं.।।२ ।।
`द्यानत' जो ध्याऊं सो पाऊं, पुद्गलसों कछु हेत ना ।।मैं नूं.।।३ ।।