मैं हरख्यौ निरख्यौ मुख तेरो
From जैनकोष
मैं हरख्यौ निरख्यौ मुख तेरो ।
नासान्यस्त नयन भ्रू हलय न, वयन निवारन मोह अंधेरो ।।टेक. ।।
परमें कर मैं निजबुधि अब लों, भवसरमें दुख सह्यौ घनेरो ।
सो दुख भानन स्वपर पिछानन, तुमबिन आन न कारन हेरो ।।१ ।।
चाह भई शिवराह लाहकी, गयौ उछाह असंजम केरो ।
`दौलत' हितविराग चित आन्यौ, जान्यौ रूप ज्ञानदृग मेरो ।।२ ।।