योगसार - जीव-अधिकार गाथा 49
From जैनकोष
आस्रव रोकने/संवर का एकमेव उपाय -
नागच्छच्छक्यते कर्म रोद्धुं केनापि निश्चितम् ।
निराकृत्य परद्रव्याण्यात्मतत्त्वरतिं विना ।।४९ ।।
अन्वय :- परद्रव्याणि निराकृत्य आत्मतत्त्वरतिं विना आगच्छन् कर्म निश्चितं केनापि रोद्धुं न शक्यते ।
सरलार्थ :- परद्रव्यों को छोड़कर अर्थात् हेय अथवा ज्ञेय मानकर निजात्मतत्त्व में लीनता किये बिना आते हुए कर्म समूह को किसी भी उपाय से रोकना सम्भव नहीं है; यह निश्चित/परमसत्य है ।