योगसार - जीव-अधिकार गाथा 54
From जैनकोष
शरीरसंयोग से वर्णादिक शुद्धात्मा के कहे जाते हैं -
शरीर-योगत: सन्ति वर्ण-गन्ध-रसादय: ।
स्फेटकस्येव शुद्धस्य रक्त-पुष्पादि-योगत: ।।५४ ।।
अन्वय :- रक्त-पुष्पादियोगत: शुद्धस्य स्फेटकस्य इव (शुद्धात्मन:) वर्ण-गन्ध-रसादय: शरीरयोगत: सन्ति ।
सरलार्थ :- जैसे शुद्ध अर्थात् श्वेत स्फेटक मणि के लाल, पीले, हरे आदि पुष्पों के संयोग/ निमित्त से लाल, पीले, हरे आदि रंग देखे जाते हैं; वैसे शरीर के संयोग से शुद्धात्मा के वर्ण, गंध, रस आदि कहे जाते हैं ।