योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 263
From जैनकोष
आत्मतत्त्व में लवलीन संयमी को कर्म की निर्जरा -
कर्म निर्जीर्यते पूतं विदधानेन संयमम् ।
आत्मतत्त्वनिविष्टेन जिनागमनिवेदितम् ।।२६३।।
अन्वय :- जिनागम-निवेदितं पूतं संयमं विदधानेन आत्म-तत्त्व-निविष्टेन कर्म निर्जीर्यते ।
सरलार्थ :- जिनागम-कथित पवित्र संयम का आचरण करते हुए जो मुनिराज अनादिअन ंत, निज, शुद्ध आत्मतत्त्व में लवलीन रहते हैं, उनके ज्ञानावरणादि आठों कर्म निर्जरा को प्राप्त होते हैं ।