वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1806
From जैनकोष
त्रैलोक्यनाथसंसेव्य: कोऽयं देश: सुखाकर: ।
अनंतमहिमाधारो विश्वलोकाभिनंदित ।।1806।।
जन्मस्थान के प्रति देव का आश्चर्य व आकर्षण―फिर वह देव विचार करता है कि यह कौनसा देश है, जिस जगह बड़े सुखपूर्वक उपपाद शय्या पर जन्म लेता है वह देव तो उस स्थान को निरखकर व उन सब नवीन समागमों को देखकर चिंतन कर रहा है कि यह कौनसा देश है? यह तो सुख की खान है । यहाँ तो सर्व वस्तुवें रमणीक और ये सब जन बड़े दिव्य कल्पित रूप रखने वाले सुखी नजर आ रहे हैं । यह तो बड़े-बड़े महापुरुषों के सेवने योग्य देश है । जिस देश के सभी लोग इच्छा करें, सबके द्वारा जो वांछनीय है, सुखों का आधार है ऐसी यह कौनसी भूमि है? इस प्रकार वह उत्पन्न हुआ देव चिंतन कर रहा है ।