अर्हद्दास: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) सद्भद्रिलपुर के निवासी सेठ धनदत्त और उसकी भार्या नन्वयशा का चौथा पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 70. 182-186, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.113-115 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) सद्भद्रिलपुर के निवासी सेठ धनदत्त और उसकी भार्या नन्वयशा का चौथा पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 70. 182-186, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_18#113|हरिवंशपुराण - 18.113-115]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) घातकीखंड द्वीप में पूर्व मेरु के पश्चिम विदेह में गंधिला नामक देश की अयोध्या नगरी का राजा । इसकी दो रानियाँ थीं—सुव्रता और जिनदत्ता । इन दोनों रानियों के क्रमश: वीतभय बलभद्र और विभीषण नारायण ये दो पुत्र हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 59.277-278, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 27.111-112 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) घातकीखंड द्वीप में पूर्व मेरु के पश्चिम विदेह में गंधिला नामक देश की अयोध्या नगरी का राजा । इसकी दो रानियाँ थीं—सुव्रता और जिनदत्ता । इन दोनों रानियों के क्रमश: वीतभय बलभद्र और विभीषण नारायण ये दो पुत्र हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 59.277-278, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_27#111|हरिवंशपुराण - 27.111-112]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) जंबूद्वीप के पश्चिम विदेह क्षेत्र में सीतोदा नदी के उत्तर तट पर स्थित सुगंधिला देश के सिंहपुर नगर का राजा । जिनदत्ता इसकी रानी थी । इस रानी से अपराजित नाम का एक पुत्र हुआ था । इसने इसी पुत्र को राज्य देकर विमलवाहन जिनेंद्र से दीक्षा धारण कर ली थी तथा अंत में इन्हीं गुरु के साथ मोक्ष पद पाया था । <span class="GRef"> महापुराण 70.4, 15, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.310 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) जंबूद्वीप के पश्चिम विदेह क्षेत्र में सीतोदा नदी के उत्तर तट पर स्थित सुगंधिला देश के सिंहपुर नगर का राजा । जिनदत्ता इसकी रानी थी । इस रानी से अपराजित नाम का एक पुत्र हुआ था । इसने इसी पुत्र को राज्य देकर विमलवाहन जिनेंद्र से दीक्षा धारण कर ली थी तथा अंत में इन्हीं गुरु के साथ मोक्ष पद पाया था । <span class="GRef"> महापुराण 70.4, 15, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#310|हरिवंशपुराण - 34.310]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) जंबूद्वीप के कोशल देश में स्थित अयोध्या नगरी का निवासी सेठ । वप्रश्री इसकी भार्या थी तथा उससे पूर्णभद्र और मणिभद्र ये दो पुत्र हुए थे । अंत में इसने इसी नगरी के राजा अरिंजय के साथ संयम धारण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 72.25-29 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) जंबूद्वीप के कोशल देश में स्थित अयोध्या नगरी का निवासी सेठ । वप्रश्री इसकी भार्या थी तथा उससे पूर्णभद्र और मणिभद्र ये दो पुत्र हुए थे । अंत में इसने इसी नगरी के राजा अरिंजय के साथ संयम धारण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 72.25-29 </span></p> | ||
<p id="5">(5) जंबूद्वीप के कुरुजांगल देश में स्थित हस्तिनापुर का राजा । काश्यपा इसकी रानी थी । पूर्णभद्र और मणिभद्र के जीव स्वर्ग से च्युत होकर मधु और क्रीडव नाम से इसके दो पुत्र हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 72.25-39 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) जंबूद्वीप के कुरुजांगल देश में स्थित हस्तिनापुर का राजा । काश्यपा इसकी रानी थी । पूर्णभद्र और मणिभद्र के जीव स्वर्ग से च्युत होकर मधु और क्रीडव नाम से इसके दो पुत्र हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 72.25-39 </span></p> | ||
<p id="6">(6) राजगृही का एक सेठ । इसकी जिनदासी नाम की भार्या थी । अंतिम केवली जंबूस्वामी इसी के पुत्र थे । <span class="GRef"> महापुराण 76.35-37 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) राजगृही का एक सेठ । इसकी जिनदासी नाम की भार्या थी । अंतिम केवली जंबूस्वामी इसी के पुत्र थे । <span class="GRef"> महापुराण 76.35-37 </span></p> | ||
<p id="7">(7) जंबूकुमार के वंश में उत्पन्न सेठ धर्मप्रिय और उसकी भार्या गुणदेवी का पुत्र । यह महाव्यसनी था फिर भी कुछ पुण्य के प्रभाव से अनावृत नामक देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 76.124-127 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) जंबूकुमार के वंश में उत्पन्न सेठ धर्मप्रिय और उसकी भार्या गुणदेवी का पुत्र । यह महाव्यसनी था फिर भी कुछ पुण्य के प्रभाव से अनावृत नामक देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 76.124-127 </span></p> | ||
<p id="8">(8) इस नाम का एक जैन । इसने सुंदर नाम के | <p id="8" class="HindiText">(8) इस नाम का एक जैन । इसने सुंदर नाम के मिथ्यात्वी विप्र को उसका मिथ्यात्व छुड़ाकर सुमार्ग पर लगाया था । <span class="GRef"> महापुराण 19.170-196 </span></p> | ||
<p id="9">(9) एक श्रेष्ठी । राम को इसी ने बताया था कि उनके कष्ट से मुनिसंघ भी व्यथित है । तभी सुव्रत मुनि के आगमन की सूचना उन्हें मिली थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 119.10-12 </span></p> | <p id="9" class="HindiText">(9) एक श्रेष्ठी । राम को इसी ने बताया था कि उनके कष्ट से मुनिसंघ भी व्यथित है । तभी सुव्रत मुनि के आगमन की सूचना उन्हें मिली थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_119#10|पद्मपुराण - 119.10-12]] </span></p> | ||
<p id="10">(10) मेरु पर्वत के पूर्व में स्थित विजयावती नगरी के गृहस्थ सुनंद और उसकी स्त्री रोहिणी का पुत्र और ऋषिदास का | <p id="10">(10) मेरु पर्वत के पूर्व में स्थित विजयावती नगरी के गृहस्थ सुनंद और उसकी स्त्री रोहिणी का पुत्र और ऋषिदास का बड़ा भाई । यह तो रावण का जीव था और ऋषिदास लक्ष्मण का । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_123#112|पद्मपुराण - 123.112-116]], 127 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
(1) सद्भद्रिलपुर के निवासी सेठ धनदत्त और उसकी भार्या नन्वयशा का चौथा पुत्र । महापुराण 70. 182-186, हरिवंशपुराण - 18.113-115
(2) घातकीखंड द्वीप में पूर्व मेरु के पश्चिम विदेह में गंधिला नामक देश की अयोध्या नगरी का राजा । इसकी दो रानियाँ थीं—सुव्रता और जिनदत्ता । इन दोनों रानियों के क्रमश: वीतभय बलभद्र और विभीषण नारायण ये दो पुत्र हुए थे । महापुराण 59.277-278, हरिवंशपुराण - 27.111-112
(3) जंबूद्वीप के पश्चिम विदेह क्षेत्र में सीतोदा नदी के उत्तर तट पर स्थित सुगंधिला देश के सिंहपुर नगर का राजा । जिनदत्ता इसकी रानी थी । इस रानी से अपराजित नाम का एक पुत्र हुआ था । इसने इसी पुत्र को राज्य देकर विमलवाहन जिनेंद्र से दीक्षा धारण कर ली थी तथा अंत में इन्हीं गुरु के साथ मोक्ष पद पाया था । महापुराण 70.4, 15, हरिवंशपुराण - 34.310
(4) जंबूद्वीप के कोशल देश में स्थित अयोध्या नगरी का निवासी सेठ । वप्रश्री इसकी भार्या थी तथा उससे पूर्णभद्र और मणिभद्र ये दो पुत्र हुए थे । अंत में इसने इसी नगरी के राजा अरिंजय के साथ संयम धारण किया था । महापुराण 72.25-29
(5) जंबूद्वीप के कुरुजांगल देश में स्थित हस्तिनापुर का राजा । काश्यपा इसकी रानी थी । पूर्णभद्र और मणिभद्र के जीव स्वर्ग से च्युत होकर मधु और क्रीडव नाम से इसके दो पुत्र हुए थे । महापुराण 72.25-39
(6) राजगृही का एक सेठ । इसकी जिनदासी नाम की भार्या थी । अंतिम केवली जंबूस्वामी इसी के पुत्र थे । महापुराण 76.35-37
(7) जंबूकुमार के वंश में उत्पन्न सेठ धर्मप्रिय और उसकी भार्या गुणदेवी का पुत्र । यह महाव्यसनी था फिर भी कुछ पुण्य के प्रभाव से अनावृत नामक देव हुआ । महापुराण 76.124-127
(8) इस नाम का एक जैन । इसने सुंदर नाम के मिथ्यात्वी विप्र को उसका मिथ्यात्व छुड़ाकर सुमार्ग पर लगाया था । महापुराण 19.170-196
(9) एक श्रेष्ठी । राम को इसी ने बताया था कि उनके कष्ट से मुनिसंघ भी व्यथित है । तभी सुव्रत मुनि के आगमन की सूचना उन्हें मिली थी । पद्मपुराण - 119.10-12
(10) मेरु पर्वत के पूर्व में स्थित विजयावती नगरी के गृहस्थ सुनंद और उसकी स्त्री रोहिणी का पुत्र और ऋषिदास का बड़ा भाई । यह तो रावण का जीव था और ऋषिदास लक्ष्मण का । पद्मपुराण - 123.112-116, 127