भानु: Difference between revisions
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<p id="5" class="HindiText">(5) मथुरा का बारह करोड़ मुद्राओं का स्वामी एक श्रेष्ठी । यमुना इसकी स्त्री थी । इन दोनों के सुभानु, भानुकीर्ति, भानुषेण, शूर, सूरदेव, शूरदत्त और शूरसेन ये सात पुत्र तथा क्रमश: कालिंदी, तिलका, कांता श्रीकांता, सुंदरी, द्युति और चंद्रकांता पुत्र-वधुएँ थी । इसने अभयनंदी गुरु से तथा इसकी स्त्री यमुना ने जिनदत्ता आर्यिका से दीक्षा ले ली थी । इसके पुत्र भी वरधर्म गुरु के समीप दीक्षित हो गये थे । आयु के अंत में समाधिमरण करके यह सौधर्म स्वर्ग में एक सागर की आयु वाला त्रायस्त्रिंश जाति का उत्तम देव हुआ । इसका अपर नाम भानुदत्त था । <span class="GRef"> महापुराण 71.201-206, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_33#96|हरिवंशपुराण - 33.96-100]], [ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_33#124|हरिवंशपुराण - 33.124-130]] </span></p> | |||
<p id="6" class="HindiText">(6) जीवद्यशा के भाई और कंस के साले सुभानु का पुत्र । कंस ने यह घोषणा करायी थी कि नागशय्या पर चढ़कर एक हाथ से शंख बजाते हुए दूसरे हाथ से धनुष चढ़ाने वाले को वह अपनी पुत्री देगा । इस घोषणा को सुनकर यह अपने पिता के साथ मथुरा आया था । कृष्ण इसके साथ थे । कृष्ण ने इसे पास में खड़ा करके कंस के तीनों कार्य कर दिखाये और वह शीघ्र व्रज वापस आ गया । कुछ पहरेदारों ने कंस को यह बताया कि ये कार्य इसने किये हैं और कुछ ने यह बताया कि ये कार्य इसने नहीं किसी अन्य कुमार ने किये हैं । <span class="GRef"> महापुराण 70.447-456, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_35#75|हरिवंशपुराण - 35.75]] </span></p> | |||
<p id="7" class="HindiText">(7) भरतक्षेत्र के रत्नपुर नगर का कुरुवंशी एवं काश्यपगोत्री एक राजा । यह तीर्थंकर धर्मनाथ का पिता था । इसकी रानी का नाम सुप्रभा था । <span class="GRef"> महापुराण 61.13-14, 18, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#51|पद्मपुराण - 20.51]] </span></p> | |||
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<p id="9" class="HindiText">(9) तीर्थंकर की माता द्वारा उसकी गर्भावस्था में देखे गये सोलह स्वप्नों में सातवाँ स्वप्न । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_21#12|पद्मपुराण - 21.12-14]] </span></p> | |||
<p id="10">(10) चंपा नगरी का राजा । इसकी पत्नी का नाम राधा था । इन दोनों के कोई संतान न थी । इन्हें बताया गया था कि यमुनातट पर उन्हें पेटी में एक बालक की प्राप्ति होगी । इस कथन के अनुसार इन्हें पेटी में एक बालक की प्राप्ति हुई थी । बालक ग्रहण करते समय रानी ने अपना कान खुजाया था । रानी की इस प्रवृत्ति को देखकर राजा ने बालक का नाम कर्ण रखा था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 7.279-297 </span></p> | |||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
कृष्ण का सत्यभामा रानी से पुत्र था। ( हरिवंशपुराण/44/1 ) अंत में दीक्षा धारणकर मुनि हो गया था ( हरिवंशपुराण/61/39 )।
पुराणकोष से
(1) एक नृप । यह कृष्ण के कुल की रक्षा करता था । हरिवंशपुराण - 50.130
(2) कृष्ण और सत्यभामा का पुत्र । सूर्य के प्रभामंडल के समान दैदीप्यमान होने से इसका यह नाम रखा गया था । यह अंत में दीक्षा धारण कर मुनि हो गया था । हरिवंशपुराण - 44.1, 48.69 61.39
(3) जरासंध का पुत्र । हरिवंशपुराण - 52.31
(4) मथुरा के राजा लब्धाभिमान का पुत्र और यवु का पिता । हरिवंशपुराण - 18.3
(5) मथुरा का बारह करोड़ मुद्राओं का स्वामी एक श्रेष्ठी । यमुना इसकी स्त्री थी । इन दोनों के सुभानु, भानुकीर्ति, भानुषेण, शूर, सूरदेव, शूरदत्त और शूरसेन ये सात पुत्र तथा क्रमश: कालिंदी, तिलका, कांता श्रीकांता, सुंदरी, द्युति और चंद्रकांता पुत्र-वधुएँ थी । इसने अभयनंदी गुरु से तथा इसकी स्त्री यमुना ने जिनदत्ता आर्यिका से दीक्षा ले ली थी । इसके पुत्र भी वरधर्म गुरु के समीप दीक्षित हो गये थे । आयु के अंत में समाधिमरण करके यह सौधर्म स्वर्ग में एक सागर की आयु वाला त्रायस्त्रिंश जाति का उत्तम देव हुआ । इसका अपर नाम भानुदत्त था । महापुराण 71.201-206, हरिवंशपुराण - 33.96-100, [ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_33#124|हरिवंशपुराण - 33.124-130]]
(6) जीवद्यशा के भाई और कंस के साले सुभानु का पुत्र । कंस ने यह घोषणा करायी थी कि नागशय्या पर चढ़कर एक हाथ से शंख बजाते हुए दूसरे हाथ से धनुष चढ़ाने वाले को वह अपनी पुत्री देगा । इस घोषणा को सुनकर यह अपने पिता के साथ मथुरा आया था । कृष्ण इसके साथ थे । कृष्ण ने इसे पास में खड़ा करके कंस के तीनों कार्य कर दिखाये और वह शीघ्र व्रज वापस आ गया । कुछ पहरेदारों ने कंस को यह बताया कि ये कार्य इसने किये हैं और कुछ ने यह बताया कि ये कार्य इसने नहीं किसी अन्य कुमार ने किये हैं । महापुराण 70.447-456, हरिवंशपुराण - 35.75
(7) भरतक्षेत्र के रत्नपुर नगर का कुरुवंशी एवं काश्यपगोत्री एक राजा । यह तीर्थंकर धर्मनाथ का पिता था । इसकी रानी का नाम सुप्रभा था । महापुराण 61.13-14, 18, पद्मपुराण - 20.51
(8) लंका का राक्षसवंशी एक नृप । यह राजा भानुवर्मा का उत्तराधिकारी था । यह सीता के स्वयंवर में आया था । पद्मपुराण - 5.387,पद्मपुराण - 5.394, 28.215
(9) तीर्थंकर की माता द्वारा उसकी गर्भावस्था में देखे गये सोलह स्वप्नों में सातवाँ स्वप्न । पद्मपुराण - 21.12-14
(10) चंपा नगरी का राजा । इसकी पत्नी का नाम राधा था । इन दोनों के कोई संतान न थी । इन्हें बताया गया था कि यमुनातट पर उन्हें पेटी में एक बालक की प्राप्ति होगी । इस कथन के अनुसार इन्हें पेटी में एक बालक की प्राप्ति हुई थी । बालक ग्रहण करते समय रानी ने अपना कान खुजाया था । रानी की इस प्रवृत्ति को देखकर राजा ने बालक का नाम कर्ण रखा था । पांडवपुराण 7.279-297