प्रियमित्र: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 13: | Line 13: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) छठे नारायण पुंडरीक के पूर्वभव का नाम । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#207|पद्मपुराण - 20.207]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#210|पद्मपुराण - 20.210]] </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) छठे नारायण पुंडरीक के पूर्वभव का नाम । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#207|पद्मपुराण - 20.207]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#210|पद्मपुराण - 20.210]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशी तीसरे चक्रवर्ती मघवा का पुत्र । इसने पिता से साम्राज्य प्राप्त किया था । <span class="GRef"> महापुराण 61.88,99 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशी तीसरे चक्रवर्ती मघवा का पुत्र । इसने पिता से साम्राज्य प्राप्त किया था । <span class="GRef"> महापुराण 61.88,99 </span></p> | ||
<p id="3">(3) धनदत्त और उसकी पत्नी नंदयशा के नौ पुत्रों में आठवाँँ पुत्र । आयु के अंत में मरकर यह अंधकवृष्णि और उसकी पत्नी सुभद्रा का पूरण नाम का पुत्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 70.186-998, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18. 13-14, 115-124 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) धनदत्त और उसकी पत्नी नंदयशा के नौ पुत्रों में आठवाँँ पुत्र । आयु के अंत में मरकर यह अंधकवृष्णि और उसकी पत्नी सुभद्रा का पूरण नाम का पुत्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 70.186-998, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_18#13|हरिवंशपुराण - 18.13-14]], 115-124 </span></p> | ||
<p id="4">(4) एक अवधिज्ञानी मुनि । इनसे तीर्थंकर महावीर के पूर्वभव के जीव विद्याधर राजा कनकोज्ज्वल ने दीक्षा ली थी । <span class="GRef"> महापुराण 74.223, 76.541 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) एक अवधिज्ञानी मुनि । इनसे तीर्थंकर महावीर के पूर्वभव के जीव विद्याधर राजा कनकोज्ज्वल ने दीक्षा ली थी । <span class="GRef"> महापुराण 74.223, 76.541 </span></p> | ||
<p id="5">(5) पुंडरीकिणी नगरी के राजा सुमित्र और उसकी सुव्रता नामा रानी का चक्रवर्ती पुत्र । युवा अवस्था में पिता का पद प्राप्त करने के पश्चात् इसके चौदह रत्न और नौ निधियाँ स्वयंमेव प्रकट हुई थी । दिग्विजय में इसने अनेक राजाओं को पराजित किया था । बत्तीस हजार मुकुटबद्ध नृप इसे सिर झुकाते थे । आयु के अंत में समस्त वैभव का त्याग कर इसने क्षेमंकर मुनि से धर्मोपदेश सुना और सर्वमित्र नामक पुत्र को राज्य देकर एक हजार राजाओं के साथ जिनदीक्षा ले ली । इसके पश्चात् निर्दोष संयम पालते हुए समाधिपूर्वक शरीर त्याग कर यह सहस्रार स्वर्ग में उत्पन्न हुआ और वहाँ से च्युत हो छत्रपुर नगर में वहां के राजा नंदिवर्धन और उसकी रानी वीरमती का नंद नामक पुत्र हुआ । यही आगे चलकर तीर्थंकर महावीर हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 74.235-243, 277-278, 76.542, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 5.35-53, 72-117, 134-136 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) पुंडरीकिणी नगरी के राजा सुमित्र और उसकी सुव्रता नामा रानी का चक्रवर्ती पुत्र । युवा अवस्था में पिता का पद प्राप्त करने के पश्चात् इसके चौदह रत्न और नौ निधियाँ स्वयंमेव प्रकट हुई थी । दिग्विजय में इसने अनेक राजाओं को पराजित किया था । बत्तीस हजार मुकुटबद्ध नृप इसे सिर झुकाते थे । आयु के अंत में समस्त वैभव का त्याग कर इसने क्षेमंकर मुनि से धर्मोपदेश सुना और सर्वमित्र नामक पुत्र को राज्य देकर एक हजार राजाओं के साथ जिनदीक्षा ले ली । इसके पश्चात् निर्दोष संयम पालते हुए समाधिपूर्वक शरीर त्याग कर यह सहस्रार स्वर्ग में उत्पन्न हुआ और वहाँ से च्युत हो छत्रपुर नगर में वहां के राजा नंदिवर्धन और उसकी रानी वीरमती का नंद नामक पुत्र हुआ । यही आगे चलकर तीर्थंकर महावीर हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 74.235-243, 277-278, 76.542, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 5.35-53, 72-117, 134-136 </span></p> | ||
<p id="6">(6) त्रिशृंगपुर नगर का निवासी एक सेठ । इसकी पत्नी सोमिनी से नयनसुंदरी नामा एक पुत्री थी जिसे वह युधिष्ठिर को देने का निश्चय कर चुका था, पर लाक्षागृह की घटना के कारण युधिष्ठिर की अनुपस्थिति में उसे नहीं दे सका था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45.100-104, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 13. 110-113 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) त्रिशृंगपुर नगर का निवासी एक सेठ । इसकी पत्नी सोमिनी से नयनसुंदरी नामा एक पुत्री थी जिसे वह युधिष्ठिर को देने का निश्चय कर चुका था, पर लाक्षागृह की घटना के कारण युधिष्ठिर की अनुपस्थिति में उसे नहीं दे सका था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_45#100|हरिवंशपुराण - 45.100-104]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 13. 110-113 </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पुराणकोष से
(1) छठे नारायण पुंडरीक के पूर्वभव का नाम । पद्मपुराण - 20.207,पद्मपुराण - 20.210
(2) अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशी तीसरे चक्रवर्ती मघवा का पुत्र । इसने पिता से साम्राज्य प्राप्त किया था । महापुराण 61.88,99
(3) धनदत्त और उसकी पत्नी नंदयशा के नौ पुत्रों में आठवाँँ पुत्र । आयु के अंत में मरकर यह अंधकवृष्णि और उसकी पत्नी सुभद्रा का पूरण नाम का पुत्र हुआ । महापुराण 70.186-998, हरिवंशपुराण - 18.13-14, 115-124
(4) एक अवधिज्ञानी मुनि । इनसे तीर्थंकर महावीर के पूर्वभव के जीव विद्याधर राजा कनकोज्ज्वल ने दीक्षा ली थी । महापुराण 74.223, 76.541
(5) पुंडरीकिणी नगरी के राजा सुमित्र और उसकी सुव्रता नामा रानी का चक्रवर्ती पुत्र । युवा अवस्था में पिता का पद प्राप्त करने के पश्चात् इसके चौदह रत्न और नौ निधियाँ स्वयंमेव प्रकट हुई थी । दिग्विजय में इसने अनेक राजाओं को पराजित किया था । बत्तीस हजार मुकुटबद्ध नृप इसे सिर झुकाते थे । आयु के अंत में समस्त वैभव का त्याग कर इसने क्षेमंकर मुनि से धर्मोपदेश सुना और सर्वमित्र नामक पुत्र को राज्य देकर एक हजार राजाओं के साथ जिनदीक्षा ले ली । इसके पश्चात् निर्दोष संयम पालते हुए समाधिपूर्वक शरीर त्याग कर यह सहस्रार स्वर्ग में उत्पन्न हुआ और वहाँ से च्युत हो छत्रपुर नगर में वहां के राजा नंदिवर्धन और उसकी रानी वीरमती का नंद नामक पुत्र हुआ । यही आगे चलकर तीर्थंकर महावीर हुआ । महापुराण 74.235-243, 277-278, 76.542, वीरवर्द्धमान चरित्र 5.35-53, 72-117, 134-136
(6) त्रिशृंगपुर नगर का निवासी एक सेठ । इसकी पत्नी सोमिनी से नयनसुंदरी नामा एक पुत्री थी जिसे वह युधिष्ठिर को देने का निश्चय कर चुका था, पर लाक्षागृह की घटना के कारण युधिष्ठिर की अनुपस्थिति में उसे नहीं दे सका था । हरिवंशपुराण - 45.100-104, पांडवपुराण 13. 110-113