सुमति: Difference between revisions
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<p id="2" class="HindiText">(2) जंबूद्वीप की पुंडरीकिणी नगरी के वज्रमुष्टि और उसकी स्त्री सुभद्रा की पुत्री। इसने सुंदरी आर्यिका से प्रेरित होकर रत्नावली तप किया था जिसके प्रभाव से आयु के अंत में यह ब्रह्मेंद्र की इंद्राणी तथा स्वर्ग से चयकर जांबवती हुई। <span class="GRef"> महापुराण 71.366-369, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#50|हरिवंशपुराण - 60.50-53]] </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) जंबूद्वीप की पुंडरीकिणी नगरी के वज्रमुष्टि और उसकी स्त्री सुभद्रा की पुत्री। इसने सुंदरी आर्यिका से प्रेरित होकर रत्नावली तप किया था जिसके प्रभाव से आयु के अंत में यह ब्रह्मेंद्र की इंद्राणी तथा स्वर्ग से चयकर जांबवती हुई। <span class="GRef"> महापुराण 71.366-369, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#50|हरिवंशपुराण - 60.50-53]] </span></p> | ||
<p id="3" class="HindiText">(3) धातकीखंडद्वीप क पूर्व विदेह क्षेत्र में रत्नसंचय नगर के राजा विश्वसेन का मंत्री। युद्ध में राजा के मरने पर इसने रानी को धर्म का उपदेश दिया था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#57|हरिवंशपुराण - 60.57-60]] </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) धातकीखंडद्वीप क पूर्व विदेह क्षेत्र में रत्नसंचय नगर के राजा विश्वसेन का मंत्री। युद्ध में राजा के मरने पर इसने रानी को धर्म का उपदेश दिया था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#57|हरिवंशपुराण - 60.57-60]] </span></p> | ||
<p id="4" class="HindiText">(4) जंबूद्वीप के वत्सदेश की कौशांबी नगरी के राजा सुमुख का मंत्री। इसने राजा का वनमाला से मिलन कराया था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_14#1|हरिवंशपुराण - 14.1-2]], 6, 53-95 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) जंबूद्वीप के वत्सदेश की कौशांबी नगरी के राजा सुमुख का मंत्री। इसने राजा का वनमाला से मिलन कराया था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_14#1|हरिवंशपुराण - 14.1-2]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_14#6|6]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_14#53|53-95]] </span></p> | ||
<p id="5" class="HindiText">(5) एक मुनि। इन्होंने वशिष्ठ मुनि को अपने पास छ: मास रखकर मुनि-चर्या सिखाई थी। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_23#73|हरिवंशपुराण - 23.73]] </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) एक मुनि। इन्होंने वशिष्ठ मुनि को अपने पास छ: मास रखकर मुनि-चर्या सिखाई थी। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_23#73|हरिवंशपुराण - 23.73]] </span></p> | ||
<p id="6" class="HindiText">(6) राजा अकंपन की पुत्री सुलोचना की धाय। यह सुलोचना का लालन-पालन करती थी। <span class="GRef"> महापुराण 43.124-127, 136-137, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 3.26 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) राजा अकंपन की पुत्री सुलोचना की धाय। यह सुलोचना का लालन-पालन करती थी। <span class="GRef"> महापुराण 43.124-127, 136-137, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 3.26 </span></p> | ||
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<p id="8" class="HindiText">(8) भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित रथनूपुर नगर के राजा ज्वलनजटी का मंत्री। इसने राजा की पुत्री स्वयंप्रभा का विवाह करने के लिए राजा से स्वयंवर विधि का प्रस्ताव रखा था जिसे राजा ने सहर्ष स्वीकार किया था। <span class="GRef"> महापुराण 62.25-30, 81-82, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.11-13, 37-39 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित रथनूपुर नगर के राजा ज्वलनजटी का मंत्री। इसने राजा की पुत्री स्वयंप्रभा का विवाह करने के लिए राजा से स्वयंवर विधि का प्रस्ताव रखा था जिसे राजा ने सहर्ष स्वीकार किया था। <span class="GRef"> महापुराण 62.25-30, 81-82, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.11-13, 37-39 </span></p> | ||
<p id="9" class="HindiText">(9) पोदनपुर के राजा श्रीविजय का मंत्री। इसने राजा को मरने से बचाने के लिए पानी के भीतर पेटी में बंद रखने का उपाय बताया था। <span class="GRef"> पांडवपुराण 4. 96-97, 114 </span></p> | <p id="9" class="HindiText">(9) पोदनपुर के राजा श्रीविजय का मंत्री। इसने राजा को मरने से बचाने के लिए पानी के भीतर पेटी में बंद रखने का उपाय बताया था। <span class="GRef"> पांडवपुराण 4. 96-97, 114 </span></p> | ||
<p id="10">(10) जंबूद्वीप में पूर्व विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा दृढ़रथ की रानी। वरसेन इसका पुत्र था। <span class="GRef"> महापुराण 63.142-148, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.53-57 </span></p> | <p id="10" class="HindiText">(10) जंबूद्वीप में पूर्व विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा दृढ़रथ की रानी। वरसेन इसका पुत्र था। <span class="GRef"> महापुराण 63.142-148, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.53-57 </span></p> | ||
<p id="11">(11) विदेहक्षेत्र में गंधिल देश के पाटलीग्राम के वणिक् नागदत्ता की स्त्री। इसके नंद, नंदिमित्र, नंदिषेण, वरसेन और जयसेन ये पाँच पुत्र और मदनकांता तथा श्रीकांता ये दो पुत्रियाँ थी। <span class="GRef"> महापुराण 6.126-130 </span></p> | <p id="11" class="HindiText">(11) विदेहक्षेत्र में गंधिल देश के पाटलीग्राम के वणिक् नागदत्ता की स्त्री। इसके नंद, नंदिमित्र, नंदिषेण, वरसेन और जयसेन ये पाँच पुत्र और मदनकांता तथा श्रीकांता ये दो पुत्रियाँ थी। <span class="GRef"> महापुराण 6.126-130 </span></p> | ||
<p id="12">(12) विदेहक्षेत्र में गंधिल देश के पलाल पर्वत ग्राम के देवलिग्राम पटेल की स्त्री। धनश्री इसकी पुत्री थी। <span class="GRef"> महापुराण 6.134-135 </span></p> | <p id="12" class="HindiText">(12) विदेहक्षेत्र में गंधिल देश के पलाल पर्वत ग्राम के देवलिग्राम पटेल की स्त्री। धनश्री इसकी पुत्री थी। <span class="GRef"> महापुराण 6.134-135 </span></p> | ||
<p id="13">(13) तीर्थंकर पुष्पदंत का पुत्र। पुष्पदंत ने इसे ही राज्य भार सौंपकर दीक्षा ली थी। <span class="GRef"> महापुराण 55.45 </span></p> | <p id="13" class="HindiText">(13) तीर्थंकर पुष्पदंत का पुत्र। पुष्पदंत ने इसे ही राज्य भार सौंपकर दीक्षा ली थी। <span class="GRef"> महापुराण 55.45 </span></p> | ||
<p id="14">(14) अपराजित बलभद्र और रानी विजया की पुत्री। इसने एक देवी से अपने पूर्वभव सुनकर सुव्रता आर्यिका के पास सात सौ कन्याओं के साथ दीक्षा ले ली थी। आयु के अंत में यह आनत स्वर्ग के अनुदिश विभान में देव हुई। <span class="GRef"> महापुराण 63. 2-4, 12-24 </span></p> | <p id="14" class="HindiText">(14) अपराजित बलभद्र और रानी विजया की पुत्री। इसने एक देवी से अपने पूर्वभव सुनकर सुव्रता आर्यिका के पास सात सौ कन्याओं के साथ दीक्षा ले ली थी। आयु के अंत में यह आनत स्वर्ग के अनुदिश विभान में देव हुई। <span class="GRef"> महापुराण 63. 2-4, 12-24 </span></p> | ||
<p id="15">(15) कौशांबी नगरी का एक सेठ। इसकी स्त्री सुभद्रा थी। <span class="GRef"> महापुराण 71. 437 </span></p> | <p id="15" class="HindiText">(15) कौशांबी नगरी का एक सेठ। इसकी स्त्री सुभद्रा थी। <span class="GRef"> महापुराण 71. 437 </span></p> | ||
<p id="16">(16) साकेत नगर के राजा दिव्यबल की रानी। हिरण्यवती इसकी पुत्री थी। <span class="GRef"> महापुराण 59.208-209 </span></p> | <p id="16" class="HindiText">(16) साकेत नगर के राजा दिव्यबल की रानी। हिरण्यवती इसकी पुत्री थी। <span class="GRef"> महापुराण 59.208-209 </span></p> | ||
<p id="17">(17) एक गणनी। धातकीखंडद्वीप के तिलकनगर की रानी सुवर्णतिलका ने इन्हीं से दीक्षा ली थी। <span class="GRef"> महापुराण 63. 175 </span></p> | <p id="17" class="HindiText">(17) एक गणनी। धातकीखंडद्वीप के तिलकनगर की रानी सुवर्णतिलका ने इन्हीं से दीक्षा ली थी। <span class="GRef"> महापुराण 63. 175 </span></p> | ||
<p id="18">(18) रावण का सारथी। रावण ने अपना रथ इससे इंद्र के समक्ष ले जाने को कहा था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_12#305|पद्मपुराण - 12.305-306]] </span></p> | <p id="18" class="HindiText">(18) रावण का सारथी। रावण ने अपना रथ इससे इंद्र के समक्ष ले जाने को कहा था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_12#305|पद्मपुराण - 12.305-306]] </span></p> | ||
<p id="19">(19) महेंद्र विद्याधर का मंत्री। इसने रावण को अंजना का पति होने योग्य नहीं बताया था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_15#25|पद्मपुराण - 15.25]],31 </span></p> | <p id="19" class="HindiText">(19) महेंद्र विद्याधर का मंत्री। इसने रावण को अंजना का पति होने योग्य नहीं बताया था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_15#25|पद्मपुराण - 15.25]], [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_15#31|31]] </span></p> | ||
<p id="20">(20) एक राजा। यह भरत के साथ दीक्षित हो गया था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_88#1|पद्मपुराण - 88.1-2]], 4 </span></p> | <p id="20" class="HindiText">(20) एक राजा। यह भरत के साथ दीक्षित हो गया था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_88#1|पद्मपुराण - 88.1-2]], [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_88#4|4]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 18:56, 14 December 2023
सिद्धांतकोष से
पुराणकोष से
(1) अवसर्पिणी काल के सुषमा-दु:षमा चौथे काल में उत्पन्न पाँचवें तीर्थंकर। देखें सुमतिनाथ
(2) जंबूद्वीप की पुंडरीकिणी नगरी के वज्रमुष्टि और उसकी स्त्री सुभद्रा की पुत्री। इसने सुंदरी आर्यिका से प्रेरित होकर रत्नावली तप किया था जिसके प्रभाव से आयु के अंत में यह ब्रह्मेंद्र की इंद्राणी तथा स्वर्ग से चयकर जांबवती हुई। महापुराण 71.366-369, हरिवंशपुराण - 60.50-53
(3) धातकीखंडद्वीप क पूर्व विदेह क्षेत्र में रत्नसंचय नगर के राजा विश्वसेन का मंत्री। युद्ध में राजा के मरने पर इसने रानी को धर्म का उपदेश दिया था। हरिवंशपुराण - 60.57-60
(4) जंबूद्वीप के वत्सदेश की कौशांबी नगरी के राजा सुमुख का मंत्री। इसने राजा का वनमाला से मिलन कराया था। हरिवंशपुराण - 14.1-2, 6, 53-95
(5) एक मुनि। इन्होंने वशिष्ठ मुनि को अपने पास छ: मास रखकर मुनि-चर्या सिखाई थी। हरिवंशपुराण - 23.73
(6) राजा अकंपन की पुत्री सुलोचना की धाय। यह सुलोचना का लालन-पालन करती थी। महापुराण 43.124-127, 136-137, पांडवपुराण 3.26
(7) राजा अकंपन का एक मंत्री। इसने सुलोचना का परिणय स्वयंवर विधि से करने का राजा से आग्रह किया था। महापुराण 43. 127, 182, 194-197 पद्मपुराण - 3.32, पांडवपुराण 3.39-40
(8) भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित रथनूपुर नगर के राजा ज्वलनजटी का मंत्री। इसने राजा की पुत्री स्वयंप्रभा का विवाह करने के लिए राजा से स्वयंवर विधि का प्रस्ताव रखा था जिसे राजा ने सहर्ष स्वीकार किया था। महापुराण 62.25-30, 81-82, पांडवपुराण 4.11-13, 37-39
(9) पोदनपुर के राजा श्रीविजय का मंत्री। इसने राजा को मरने से बचाने के लिए पानी के भीतर पेटी में बंद रखने का उपाय बताया था। पांडवपुराण 4. 96-97, 114
(10) जंबूद्वीप में पूर्व विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा दृढ़रथ की रानी। वरसेन इसका पुत्र था। महापुराण 63.142-148, पांडवपुराण 5.53-57
(11) विदेहक्षेत्र में गंधिल देश के पाटलीग्राम के वणिक् नागदत्ता की स्त्री। इसके नंद, नंदिमित्र, नंदिषेण, वरसेन और जयसेन ये पाँच पुत्र और मदनकांता तथा श्रीकांता ये दो पुत्रियाँ थी। महापुराण 6.126-130
(12) विदेहक्षेत्र में गंधिल देश के पलाल पर्वत ग्राम के देवलिग्राम पटेल की स्त्री। धनश्री इसकी पुत्री थी। महापुराण 6.134-135
(13) तीर्थंकर पुष्पदंत का पुत्र। पुष्पदंत ने इसे ही राज्य भार सौंपकर दीक्षा ली थी। महापुराण 55.45
(14) अपराजित बलभद्र और रानी विजया की पुत्री। इसने एक देवी से अपने पूर्वभव सुनकर सुव्रता आर्यिका के पास सात सौ कन्याओं के साथ दीक्षा ले ली थी। आयु के अंत में यह आनत स्वर्ग के अनुदिश विभान में देव हुई। महापुराण 63. 2-4, 12-24
(15) कौशांबी नगरी का एक सेठ। इसकी स्त्री सुभद्रा थी। महापुराण 71. 437
(16) साकेत नगर के राजा दिव्यबल की रानी। हिरण्यवती इसकी पुत्री थी। महापुराण 59.208-209
(17) एक गणनी। धातकीखंडद्वीप के तिलकनगर की रानी सुवर्णतिलका ने इन्हीं से दीक्षा ली थी। महापुराण 63. 175
(18) रावण का सारथी। रावण ने अपना रथ इससे इंद्र के समक्ष ले जाने को कहा था। पद्मपुराण - 12.305-306
(19) महेंद्र विद्याधर का मंत्री। इसने रावण को अंजना का पति होने योग्य नहीं बताया था। पद्मपुराण - 15.25, 31
(20) एक राजा। यह भरत के साथ दीक्षित हो गया था। पद्मपुराण - 88.1-2, 4