सौ सौ बार हटक नहिं मानी: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: सौ सौ बार हटक नहिं मानी, नेक तोहि समझायो रे ।।टेक. ।।<br> देख सुगुरुकी परहित...) |
No edit summary |
||
Line 12: | Line 12: | ||
[[Category:Bhajan]] | [[Category:Bhajan]] | ||
[[Category:दौलतरामजी]] | [[Category:दौलतरामजी]] | ||
[[Category:आध्यात्मिक भक्ति]] |
Latest revision as of 06:46, 16 February 2008
सौ सौ बार हटक नहिं मानी, नेक तोहि समझायो रे ।।टेक. ।।
देख सुगुरुकी परहित में रति, हित उपदेश सुनायो रे ।।
विषयभुजंगसेय दुखपायो, फुनि तिनसों लपटायो रे ।
स्वपदविसार रच्यो परपदमें, मदरत ज्यों बोरायो रे ।।१ ।।
तन धन स्वजन नहीं है तेरे, नाहक नेह लगायो रे ।
क्यों न तजै भ्रम चाख समामृत, जो नित संतसुहायो रे ।।२ ।।
अब हू समझ कठिन यह नरभव, जिनवृष बिना गमायो रे ।
ते विलखैं मणिडार उदधिमें, `दौलत' को पछतायो रे ।।३ ।।