भाई! ब्रह्मज्ञान नहिं जाना रे: Difference between revisions
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भाई! ब्रह्मज्ञान नहिं जाना रे
सब संसार दु:ख सागरमें, जामन मरन कराना रे।।भाई. ।।
तीन लोकके सब पुद्गल तैं, निगल निगल उगलाना रे ।
छर्दि डारके फिर तू चाखै, उपजै तोहि न ग्लाना रे ।।भाई. ।।१ ।।
आठ प्रदेश बिन तिहुँ जगमें, रहा न कोइ ठिकाना रे ।
उपजा मरा जहाँ तू नाहीं, सो जानै भगवाना रे ।।भाई. ।।२ ।।
भव भवके नख केस नालका, कीजे जो इक ठाना रे ।
होंय अधिक ते गिरी सुमेरुतैं, भाखा वेद पुराना रे ।।भाई. ।।३ ।।
जननी थन-पय जनम जनम को, जो तैं कीना पाना रे ।
सो तो अधिक सकल सागरतैं, अजहूँ नाहिं अघाना रे ।।भाई. ।।४ ।।
तोहि मरण जे माता रोई, आँसू जल सगलाना रे ।
अधिक होय सब सागरसेती, अजहूँ त्रास न आना रे ।।भाई. ।।५ ।।
गरभ जनम दुख बाल बृद्ध दुख, वार अनन्त सहाना रे ।
दरवलिंग धरि जे तन त्यागे, तिनको नाहिं प्रमाना रे ।।भाई. ।।६ ।।
बिन समभाव सहे दुख एते, अजहूँ चेत अयाना रे ।
ज्ञान-सुधारस पी लहि `द्यानत', अजर अमरपद थाना रे ।।भाई. ।।७ ।।