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<li>हस्तिनापुर के राजा श्रीचंद्र का पुत्र था। दीक्षा लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। तथा सोलह कारण भावनाओं का चिंतवन कर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया। समाधिमरण कर अनुत्तर विमान में अहमिंद्र पद पाया। ( महापुराण/70/51-59 ) यह नेमिनाथ भगवान् का पूर्व का दूसरा भव है।-देखें [[ नेमिनाथ ]]।</li> | <li>हस्तिनापुर के राजा श्रीचंद्र का पुत्र था। दीक्षा लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। तथा सोलह कारण भावनाओं का चिंतवन कर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया। समाधिमरण कर अनुत्तर विमान में अहमिंद्र पद पाया। <span class="GRef">(महापुराण/70/51-59)</span> यह नेमिनाथ भगवान् का पूर्व का दूसरा भव है।- देखें [[ नेमिनाथ ]]।</li> | ||
<li>यह पंचम रुद्र थे-देखें [[ शलाका पुरुष#7 | शलाका पुरुष - 7]]।</li> | <li>यह पंचम रुद्र थे- देखें [[ शलाका पुरुष#7 | शलाका पुरुष - 7]]।</li> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1"> (1) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित पोदनपुर नगर के राजा सुस्थित और रानी सुलक्षणा का | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित पोदनपुर नगर के राजा सुस्थित और रानी सुलक्षणा का पुत्र। इसने अपने पूर्वजन्म की प्रवृत्तियों का स्मरण करके सुधर्माचार्य के पास दीक्षा ले ली थी। सुदत्त इसका छोटा भाई था जो मरकर सुदर्शन यक्ष हुआ था। इस यक्ष ने इनके ऊपर अनेक उपसर्ग किये थे जिन्हें सहकर ये केवली हुए। पश्चात् उस यक्ष ने भी इनसे धर्मोपदेश सुनकर समीचीन धर्म धारण कर किया था। शौर्यपुर के राजा शूर और मथुरा के राजा सुवीर के ये दीक्षागुरु थे। <span class="GRef"> महापुराण 70.122-124, 138-144, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_18#9|हरिवंशपुराण - 18.9-11]], 30, </span></p> | ||
<p id="2">(2) रुचकदर पर्वत की दक्षिण दिशा में स्थित आठ कूटों में आठवाँँ | <p id="2" class="HindiText">(2) रुचकदर पर्वत की दक्षिण दिशा में स्थित आठ कूटों में आठवाँँ कूट। चित्रा देवी की यह निवासभूमि है। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#710|हरिवंशपुराण - 5.710]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) वाराणसी नगरी का | <p id="3" class="HindiText">(3) वाराणसी नगरी का राजा। यह तीर्थंकर सुपार्श्व का पिता थे। <span class="GRef"> महापुराण 53.18-19, 23, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#43|पद्मपुराण - 20.43]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र संबंधी कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर के राजा श्रीचंद्र और रानी श्रीमती का | <p id="4" class="HindiText">(4) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र संबंधी कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर के राजा श्रीचंद्र और रानी श्रीमती का पुत्र। सुनंदा इसकी रानी थी। इसका पिता इसे राज्य देकर दीक्षित हो गया था। इसने भी संसार को नश्वर समझकर सुदृष्टि पुत्र को राज्य सौंपकर सुमंदर मुनि से दीक्षा ले ली थी। आयु के अंत में इसने एक मास का संन्यास धारण कर लिया था। इस प्रकार समाधिपूर्वक मरण करके यह जयंत नामक अनुत्तर विमान में अहमिंद्र हुआ था। <span class="GRef"> महापुराण 70. 51.59, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#43|हरिवंशपुराण - 34.43-50]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट- देखें लोक - 5.13;
- हस्तिनापुर के राजा श्रीचंद्र का पुत्र था। दीक्षा लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। तथा सोलह कारण भावनाओं का चिंतवन कर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया। समाधिमरण कर अनुत्तर विमान में अहमिंद्र पद पाया। (महापुराण/70/51-59) यह नेमिनाथ भगवान् का पूर्व का दूसरा भव है।- देखें नेमिनाथ ।
- यह पंचम रुद्र थे- देखें शलाका पुरुष - 7।
पुराणकोष से
(1) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित पोदनपुर नगर के राजा सुस्थित और रानी सुलक्षणा का पुत्र। इसने अपने पूर्वजन्म की प्रवृत्तियों का स्मरण करके सुधर्माचार्य के पास दीक्षा ले ली थी। सुदत्त इसका छोटा भाई था जो मरकर सुदर्शन यक्ष हुआ था। इस यक्ष ने इनके ऊपर अनेक उपसर्ग किये थे जिन्हें सहकर ये केवली हुए। पश्चात् उस यक्ष ने भी इनसे धर्मोपदेश सुनकर समीचीन धर्म धारण कर किया था। शौर्यपुर के राजा शूर और मथुरा के राजा सुवीर के ये दीक्षागुरु थे। महापुराण 70.122-124, 138-144, हरिवंशपुराण - 18.9-11, 30,
(2) रुचकदर पर्वत की दक्षिण दिशा में स्थित आठ कूटों में आठवाँँ कूट। चित्रा देवी की यह निवासभूमि है। हरिवंशपुराण - 5.710
(3) वाराणसी नगरी का राजा। यह तीर्थंकर सुपार्श्व का पिता थे। महापुराण 53.18-19, 23, पद्मपुराण - 20.43
(4) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र संबंधी कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर के राजा श्रीचंद्र और रानी श्रीमती का पुत्र। सुनंदा इसकी रानी थी। इसका पिता इसे राज्य देकर दीक्षित हो गया था। इसने भी संसार को नश्वर समझकर सुदृष्टि पुत्र को राज्य सौंपकर सुमंदर मुनि से दीक्षा ले ली थी। आयु के अंत में इसने एक मास का संन्यास धारण कर लिया था। इस प्रकार समाधिपूर्वक मरण करके यह जयंत नामक अनुत्तर विमान में अहमिंद्र हुआ था। महापुराण 70. 51.59, हरिवंशपुराण - 34.43-50
(5) कुरुवंशी एक राजा। यह श्रीचंद्र का पुत्र था। हरिवंशपुराण - 45.12
(6) मगधदेश का एक नगर। महापुराण 76.216