जहाँ रागद्वेष से रहित निराकुल: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: जहाँ रागद्वेष से रहित निराकुल, आतम सुख का डेरा ।<br> वो विश्व धर्म है मेरा, ...) |
No edit summary |
||
Line 11: | Line 11: | ||
जहाँ वीतराग विज्ञान कला, निज पर का बोध कराये ।<br> | जहाँ वीतराग विज्ञान कला, निज पर का बोध कराये ।<br> | ||
जो जन्म मरण से रहित, निरापद मोक्ष महल पधराये ।<br> | जो जन्म मरण से रहित, निरापद मोक्ष महल पधराये ।<br> | ||
वह जगतपूज्य | वह जगतपूज्य 'सौभाग्य' परमपद, हो आलोकित मेरा ।।३ ।।<br> | ||
<br> | <br> | ||
---- | ---- |
Revision as of 05:48, 10 February 2008
जहाँ रागद्वेष से रहित निराकुल, आतम सुख का डेरा ।
वो विश्व धर्म है मेरा, वो जैन धर्म है मेरा ।
जहाँ पद-पद पर है परम अहिंसा करती क्षमा बसेरा ।
वो विश्व धर्म है मेरा, वो जैनधर्म है मेरा ।।टेर ।।
जहाँ गूंजा करते, सत संयम के गीत सुहाने पावन ।
जहाँ ज्ञान सुधा की बहती निशिदिन धारा पाप नशावन ।
जहाँ काम क्रोध, ममता, माया का कहीं नहीं है घेरा ।।१ ।।
जहाँ समता समदृष्टि प्यारी, सद्भाव शांति के भारी ।
जहाँ सकल परिग्रह भार शून्य है, मन अदोष अविकारी ।
जहाँ ज्ञानानंत दरश सुख बल का, रहता सदा सवेरा ।।२ ।।
जहाँ वीतराग विज्ञान कला, निज पर का बोध कराये ।
जो जन्म मरण से रहित, निरापद मोक्ष महल पधराये ।
वह जगतपूज्य 'सौभाग्य' परमपद, हो आलोकित मेरा ।।३ ।।