जहाँ रागद्वेष से रहित निराकुल
From जैनकोष
जहाँ रागद्वेष से रहित निराकुल, आतम सुख का डेरा ।
वो विश्व धर्म है मेरा, वो जैन धर्म है मेरा ।
जहाँ पद-पद पर है परम अहिंसा करती क्षमा बसेरा ।
वो विश्व धर्म है मेरा, वो जैनधर्म है मेरा ।।टेर ।।
जहाँ गूंजा करते, सत संयम के गीत सुहाने पावन ।
जहाँ ज्ञान सुधा की बहती निशिदिन धारा पाप नशावन ।
जहाँ काम क्रोध, ममता, माया का कहीं नहीं है घेरा ।।१ ।।
जहाँ समता समदृष्टि प्यारी, सद्भाव शांति के भारी ।
जहाँ सकल परिग्रह भार शून्य है, मन अदोष अविकारी ।
जहाँ ज्ञानानंत दरश सुख बल का, रहता सदा सवेरा ।।२ ।।
जहाँ वीतराग विज्ञान कला, निज पर का बोध कराये ।
जो जन्म मरण से रहित, निरापद मोक्ष महल पधराये ।
वह जगतपूज्य 'सौभाग्य' परमपद, हो आलोकित मेरा ।।३ ।।