देशातिचार
From जैनकोष
भगवती आराधना /मूल व.विजयोदयी टीका/487/706
दंसणणाणादिचारे वदादिचारे तवादिचारे य। देसच्चाए विविधे सव्वच्चाए य आवण्णो ॥487॥ ...सर्वो द्विप्रकार इत्याचष्टे देशच्चाए विविधे देशातिचारं नानाप्रकारं मनोवाक कायभेदात्कृतकारितानुमतविकल्पाच्च। सव्वच्चागे य सर्वातिचारे च आवण्णो आपन्नः।
= सम्यग्दर्शन और ज्ञान में अतिचार उत्पन्न हुए हों, देशरूप अतिचार उत्पन्न हुए हों अथवा सर्व प्रकारों से अतिचार उत्पन्न हुए हों ये सर्व अतिचार क्षपक आचार्य के पास विश्वास युक्त होकर कहे ॥487॥ ....अतिचार के देशत्याग और सर्वत्याग ऐसे दो भेद हैं। मन, वचन, शरीर, कृत, कारित और अनुमोदन ऐसे नौ भेदों में से किसी एक के द्वारा सम्यग्दर्शनादिकों में दोष उत्पन्न होना ये देशातिचार है और सर्वप्रकार से अतिचार उत्पन्न होना सर्वत्यागातिचार है।
अतिचार का एक भेद–देखें अतिचार - 3।