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| 1. | <p class="HindiText">• लब्धि व उपयोग इंद्रिय - देखें [[ लब्धि#1.1 | लब्धि 1.1 ]]; [[उपयोग#1.1 | उपयोग 1.1]]. </p> | ||
<p class="HindiText">• इंद्रिय व मन जीतने का उपाय - देखें [[ संयम#2.5 | संयम - 2.5]]</p> | |||
<li class='HindiText'>[[ #1.5 | निर्वृत्ति व उपकरण भावेन्द्रियों के लक्षण ।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #1.6 | भावेन्द्रिय सामान्य का लक्षण।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #1.7 | पाँचों इन्द्रियों के लक्षण ।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #1.8 | उपयोग को इंद्रिय कैसे कह सकते हैं ।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #1.9 | चल रूप आत्मप्रदेशों में इंद्रिय-पना कैसे घटित होता है। ।]]</li> | |||
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<li class='HindiText'>[[ #2 | इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपन]]</li> | |||
<p>• अवग्रह ईहा आदिका उत्पत्ति क्रम - देखें [[ मतिज्ञान#3 | मतिज्ञान - 3]]</p> | |||
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<li class='HindiText'>[[ #2.1 | इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारी पने का निर्देश।]]</li> | |||
| | <li class='HindiText'>[[ #2.2 | चक्षु को अप्राप्यकारी कैसे कहते हो ।]]</li> | ||
<li class='HindiText'>[[ #2.3 | अर्थावग्रह व व्यंजनावग्रह में अंतर ।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #2.4 | अर्थावग्रह व व्यंजनाग्रह का स्वामित्व ।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #2.5 | अप्राप्यकारी तीन इंद्रियों में अवग्रह सिद्धि ।]]</li> | |||
<p class="HindiText"> • प्राप्यकारी व अप्राप्यकारी इंद्रियाँ। - देखें [[ इंद्रिय#1.2 | इंद्रिय - 1.2]]</p> | |||
| | <p class="HindiText"> • अवग्रह और दर्शन में अंतर। - देखें [[ दर्शन# | दर्शन ]]</p> | ||
|- | <p class="HindiText"> • अवग्रह व ईहा में अंतर।- देखें [[ अवग्रह#1.2.2 | अवग्रह - 1.2.2]]</p> | ||
<li class='HindiText'>[[ #2.6 | अवग्रह व अवाय में अंतर।]]</li> | |||
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<p class="HindiText"><strong>1. भेद व लक्षण तथा तत्संबंधी शंका समाधान</strong></p> | |||
<p class="HindiText">1. इंद्रिय सामान्य का लक्षण</p> | |||
<p class="HindiText">2. इंद्रिय सामान्य के भेद</p> | |||
| | <p class="HindiText">3. द्रव्येन्द्रिय के उत्तर भेद</p> | ||
<p class="HindiText">4. भावेन्द्रिय के उत्तर भेद</p> | |||
<p class="HindiText">• लब्धि व उपयोग इंद्रिय - देखें [[ लब्धि#1.1 | लब्धि 1.1 ]]; [[उपयोग#1.1 | उपयोग 1.1]]. </p> | |||
<p class="HindiText">• इंद्रिय व मन जीतने का उपाय - देखें [[ संयम#2.5 | संयम - 2.5]]</p> | |||
<p class="HindiText">5. निर्वृत्ति व उपकरण भावेन्द्रियों के लक्षण</p> | |||
<p class="HindiText">6. भावेन्द्रिय सामान्य का लक्षण</p> | |||
<p class="HindiText">7. पाँचों इन्द्रियों के लक्षण</p> | |||
<p class="HindiText">8. उपयोग को इंद्रिय कैसे कह सकते हैं</p> | |||
<p class="HindiText">9. चल रूप आत्मप्रदेशों में इंद्रिय-पना कैसे घटित होता है।</p> | |||
<p class="HindiText"><strong>2. इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपन</strong></p> | |||
<p class="HindiText">1. इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारी पने का निर्देश</p> | |||
<p class="HindiText">• चार इंद्रियाँ प्राप्त व अप्राप्त सब विषयों को ग्रहण करती है - देखें [[ अवग्रह#2.5 | अवग्रह - 2.5]]</p> | |||
<p class="HindiText">2. चक्षु को अप्राप्यकारी कैसे कहते हो</p> | |||
<p class="HindiText">3. श्रोत्र को भी अप्राप्यकारी क्यों नहीं मानते</p> | |||
| | <p class="HindiText">4. स्पर्शनादि सभी इन्द्रियों में भी कथंचित् अप्राप्यकारीपने संबंधी</p> | ||
<p class="HindiText">5. फिर प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपने से क्या प्रयोजन</p> | |||
<p class="HindiText"><strong>3. इंद्रिय निर्देश</strong></p> | |||
<p class="HindiText">1. भावेंद्रिय ही वास्तविक इंद्रिय है</p> | |||
<p class="HindiText">2. भावेंद्रिय को ही इंद्रिय मानते हो तो उपयोग शून्य दशा में या संशयादि दशा में जीव अनिंद्रिय हो जायेगा</p> | |||
<p class="HindiText">3. भावेंद्रिय होने पर ही द्रव्येंद्रिय होती है</p> | |||
<p class="HindiText">4. द्रव्येंद्रियों का आकार</p> | |||
<p class="HindiText">5. इन्द्रियों की अवगाहना</p> | |||
<p class="HindiText">6. इन्द्रियों का द्रव्य व क्षेत्र की अपेक्षा विषय ग्रहण</p> | |||
<p class="HindiText">7. इन्द्रियों के विषय का काम व भोग रूप विभाजन</p> | |||
<p class="HindiText">8. इन्द्रियों के विषयों संबंधी दृष्टिभेद</p> | |||
<p class="HindiText">9. ज्ञान के अर्थ में चक्षु का निर्देश</p> | |||
<p class="HindiText">• मन व इन्द्रियों में अंतर संबंधी - देखें [[ मन#3 | मन - 3]]</p> | |||
<p class="HindiText">• इंद्रिय व इंद्रिय प्राण में अंतर - देखें [[ प्राण ]]</p> | |||
<p class="HindiText">• इन्द्रिय कषाय व क्रिया रूप आस्रवों मे अंतर - देखें [[ क्रिया ]]</p> | |||
<p class="HindiText">• इन्द्रियों मे उपस्थ व जिह्वा इंद्रिय की प्रधानता - देखें [[ संयम#2 | संयम - 2]]</p> | |||
<p class="HindiText"><strong>4. इंद्रिय मार्गणा व गुणस्थान निर्देश</strong></p> | |||
<p class="HindiText">1. इंद्रिय मार्गणा की अपेक्षा जीवों के भेद</p> | |||
<p class="HindiText">• दो, तीन और चार इंद्रिय वाले विकलेंद्रिय; और पंचेंद्रिय सकलेंद्रिय कहलाते हैं - देखें [[ त्रस ]]</p> | |||
<p class="HindiText">2. एकेंद्रियादि जीवों के लक्षण</p> | |||
<p class="HindiText">3. एकेंद्रियसे पंचेंद्रिय पर्यंत इन्द्रियों का स्वामित्व</p> | |||
<p class="HindiText">• एकेंद्रियादि जीवों के भेद - देखें [[ जीव समास ]]</p> | |||
<p class="HindiText">• एकेंद्रियादि जीवों की अवगाहना - देखें [[ अवगाहना#2 | अवगाहना - 2]]</p> | |||
<p class="HindiText">4. एकेंद्रिय आदिकों में गुणस्थानों का स्वामित्व</p> | |||
<p class="HindiText">• सयोग व अयोग केवली को पंचेंद्रिय कहने संबंधी - देखें [[ केवली#5 | केवली - 5]]</p> | |||
<p class="HindiText">5. जीव अनिंद्रिय कैसे हो सकता है</p> | |||
<p class="HindiText">• इन्द्रियों के स्वामित्व संबंधी गुणस्थान, जीवसमास मार्गणा स्थानादि 20 प्ररूपणाएँ - देखें [[ सत् ]]</p> | |||
<p class="HindiText">• इंद्रिय संबंधी सत् (स्वामित्व), संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव व अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ - देखें [[ सत्]]; [[ अल्पबहुत्व#2.5 | अल्पबहुत्व 2.5 ]] ; [[ स्पर्शन]]; [[ संख्या_विषयक_प्ररूपणाएँ ]]; [[ क्षेत्र_-_इंद्रिय ]]; [[ काल ]]; [[ अंतर ]]; [[ भाव#2.10 | भाव 2.10 ]]; </p> | |||
<p class="HindiText">• इंद्रिय मार्गणा में आय के अनुसार ही व्यय होने का नियम - देखें [[ मार्गणा ]]</p> | |||
<p class="HindiText">• इंद्रिय मार्गणा से संभव कर्मो का बंध उदय सत्त्व - देखें [[ बंध ]] ; [[ उदय ]]; [[ सत्त्व ]]; </p> | |||
<p class="HindiText">• कौन-कौन जीव मरकर कहाँ-कहाँ उत्पन्न हो और क्या क्या गुण उत्पन्न करे - देखें [[ जन्म#6 | जन्म - 6]]</p> | |||
|- | <p class="HindiText">• इंद्रिय मार्गणा मे भावेंद्रिय इष्ट है - देखें [[ इंद्रिय#3 | इंद्रिय - 3]]</p> | ||
<p class="HindiText"><strong>5. एकेंद्रिय व विकलेंद्रिय निर्देश</strong></p> | |||
<p class="HindiText">• त्रस व स्थावर - देखें [[ त्रस ]] ;; [[ स्थावर ]]; </p> | |||
| | <p class="HindiText">• एकेंद्रियों में जीवत्व की सिद्धि - देखें[[ स्थावर ]]</p> | ||
<p class="HindiText">• एकेंद्रियों का लोक में अवस्थान - देखें [[ स्थावर ]]</p> | |||
<p class="HindiText">• एकेंद्रिय व विकलेंद्रिय नियम से सम्मूर्छिन ही होते है - देखें [[ सम्मूर्च्छन ]]</p> | |||
<p class="HindiText">• एकेंद्रिय व विकलेंद्रियो में अंगोपांग, संस्थान, संहनन, व दुःस्वर संबंधी नियम - देखें [[ उदय ]]</p> | |||
<p class="HindiText">1. एकेंद्रिय असंज्ञी होते हैं</p> | |||
<p class="HindiText">• एकेंद्रिय आदिको में मन के अभाव संबंधी - देखें [[ संज्ञी ]]</p> | |||
<p class="HindiText">• एकेंद्रिय जाति नामकर्म के बंध योग्य परिणाम - देखें [[ जाति ]]</p> | |||
<p class="HindiText">• एकेंद्रियो में सासादन गुणस्थान संबंधी चर्चा - देखें [[ जन्म ]] </p> | |||
<p class="HindiText">• एकेंद्रिय आदिको में क्षायिक सम्यक्त्व के अभाव संबंधी - देखें [[ तिर्यंच ]]</p> | |||
<p class="HindiText">• एकेंद्रियों से निकल सीधा मनुष्य हो क्षायिक सम्यक्त्व व मोक्ष प्राप्त करने की संभावना - देखें [[ जन्म#5 | जन्म - 5]]</p> | |||
| | <p class="HindiText">• विकलेंद्रिय व पंचेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान - देखें [[ तिर्यंच#3 | तिर्यंच - 3]]</p> | ||
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Revision as of 11:44, 13 January 2023
- भेद व लक्षण तथा तत्संबंधी शंका समाधान
- इंद्रिय सामान्य का लक्षण ।
- इंद्रिय सामान्य के भेद ।
- द्रव्येन्द्रिय के उत्तर भेद ।
- भावेन्द्रिय के उत्तर भेद ।
- निर्वृत्ति व उपकरण भावेन्द्रियों के लक्षण ।
- भावेन्द्रिय सामान्य का लक्षण।
- पाँचों इन्द्रियों के लक्षण ।
- उपयोग को इंद्रिय कैसे कह सकते हैं ।
- चल रूप आत्मप्रदेशों में इंद्रिय-पना कैसे घटित होता है। ।
- इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपन
- इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारी पने का निर्देश।
- चक्षु को अप्राप्यकारी कैसे कहते हो ।
- अर्थावग्रह व व्यंजनावग्रह में अंतर ।
- अर्थावग्रह व व्यंजनाग्रह का स्वामित्व ।
- अप्राप्यकारी तीन इंद्रियों में अवग्रह सिद्धि ।
- अवग्रह व अवाय में अंतर।
• लब्धि व उपयोग इंद्रिय - देखें लब्धि 1.1 ; उपयोग 1.1.
• इंद्रिय व मन जीतने का उपाय - देखें संयम - 2.5
• अवग्रह ईहा आदिका उत्पत्ति क्रम - देखें मतिज्ञान - 3
• प्राप्यकारी व अप्राप्यकारी इंद्रियाँ। - देखें इंद्रिय - 1.2
• अवग्रह और दर्शन में अंतर। - देखें दर्शन
• अवग्रह व ईहा में अंतर।- देखें अवग्रह - 1.2.2
1. भेद व लक्षण तथा तत्संबंधी शंका समाधान
1. इंद्रिय सामान्य का लक्षण
2. इंद्रिय सामान्य के भेद
3. द्रव्येन्द्रिय के उत्तर भेद
4. भावेन्द्रिय के उत्तर भेद
• लब्धि व उपयोग इंद्रिय - देखें लब्धि 1.1 ; उपयोग 1.1.
• इंद्रिय व मन जीतने का उपाय - देखें संयम - 2.5
5. निर्वृत्ति व उपकरण भावेन्द्रियों के लक्षण
6. भावेन्द्रिय सामान्य का लक्षण
7. पाँचों इन्द्रियों के लक्षण
8. उपयोग को इंद्रिय कैसे कह सकते हैं
9. चल रूप आत्मप्रदेशों में इंद्रिय-पना कैसे घटित होता है।
2. इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपन
1. इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारी पने का निर्देश
• चार इंद्रियाँ प्राप्त व अप्राप्त सब विषयों को ग्रहण करती है - देखें अवग्रह - 2.5
2. चक्षु को अप्राप्यकारी कैसे कहते हो
3. श्रोत्र को भी अप्राप्यकारी क्यों नहीं मानते
4. स्पर्शनादि सभी इन्द्रियों में भी कथंचित् अप्राप्यकारीपने संबंधी
5. फिर प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपने से क्या प्रयोजन
3. इंद्रिय निर्देश
1. भावेंद्रिय ही वास्तविक इंद्रिय है
2. भावेंद्रिय को ही इंद्रिय मानते हो तो उपयोग शून्य दशा में या संशयादि दशा में जीव अनिंद्रिय हो जायेगा
3. भावेंद्रिय होने पर ही द्रव्येंद्रिय होती है
4. द्रव्येंद्रियों का आकार
5. इन्द्रियों की अवगाहना
6. इन्द्रियों का द्रव्य व क्षेत्र की अपेक्षा विषय ग्रहण
7. इन्द्रियों के विषय का काम व भोग रूप विभाजन
8. इन्द्रियों के विषयों संबंधी दृष्टिभेद
9. ज्ञान के अर्थ में चक्षु का निर्देश
• मन व इन्द्रियों में अंतर संबंधी - देखें मन - 3
• इंद्रिय व इंद्रिय प्राण में अंतर - देखें प्राण
• इन्द्रिय कषाय व क्रिया रूप आस्रवों मे अंतर - देखें क्रिया
• इन्द्रियों मे उपस्थ व जिह्वा इंद्रिय की प्रधानता - देखें संयम - 2
4. इंद्रिय मार्गणा व गुणस्थान निर्देश
1. इंद्रिय मार्गणा की अपेक्षा जीवों के भेद
• दो, तीन और चार इंद्रिय वाले विकलेंद्रिय; और पंचेंद्रिय सकलेंद्रिय कहलाते हैं - देखें त्रस
2. एकेंद्रियादि जीवों के लक्षण
3. एकेंद्रियसे पंचेंद्रिय पर्यंत इन्द्रियों का स्वामित्व
• एकेंद्रियादि जीवों के भेद - देखें जीव समास
• एकेंद्रियादि जीवों की अवगाहना - देखें अवगाहना - 2
4. एकेंद्रिय आदिकों में गुणस्थानों का स्वामित्व
• सयोग व अयोग केवली को पंचेंद्रिय कहने संबंधी - देखें केवली - 5
5. जीव अनिंद्रिय कैसे हो सकता है
• इन्द्रियों के स्वामित्व संबंधी गुणस्थान, जीवसमास मार्गणा स्थानादि 20 प्ररूपणाएँ - देखें सत्
• इंद्रिय संबंधी सत् (स्वामित्व), संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव व अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ - देखें सत्; अल्पबहुत्व 2.5 ; स्पर्शन; संख्या_विषयक_प्ररूपणाएँ ; क्षेत्र_-_इंद्रिय ; काल ; अंतर ; भाव 2.10 ;
• इंद्रिय मार्गणा में आय के अनुसार ही व्यय होने का नियम - देखें मार्गणा
• इंद्रिय मार्गणा से संभव कर्मो का बंध उदय सत्त्व - देखें बंध ; उदय ; सत्त्व ;
• कौन-कौन जीव मरकर कहाँ-कहाँ उत्पन्न हो और क्या क्या गुण उत्पन्न करे - देखें जन्म - 6
• इंद्रिय मार्गणा मे भावेंद्रिय इष्ट है - देखें इंद्रिय - 3
5. एकेंद्रिय व विकलेंद्रिय निर्देश
• त्रस व स्थावर - देखें त्रस ;; स्थावर ;
• एकेंद्रियों में जीवत्व की सिद्धि - देखेंस्थावर
• एकेंद्रियों का लोक में अवस्थान - देखें स्थावर
• एकेंद्रिय व विकलेंद्रिय नियम से सम्मूर्छिन ही होते है - देखें सम्मूर्च्छन
• एकेंद्रिय व विकलेंद्रियो में अंगोपांग, संस्थान, संहनन, व दुःस्वर संबंधी नियम - देखें उदय
1. एकेंद्रिय असंज्ञी होते हैं
• एकेंद्रिय आदिको में मन के अभाव संबंधी - देखें संज्ञी
• एकेंद्रिय जाति नामकर्म के बंध योग्य परिणाम - देखें जाति
• एकेंद्रियो में सासादन गुणस्थान संबंधी चर्चा - देखें जन्म
• एकेंद्रिय आदिको में क्षायिक सम्यक्त्व के अभाव संबंधी - देखें तिर्यंच
• एकेंद्रियों से निकल सीधा मनुष्य हो क्षायिक सम्यक्त्व व मोक्ष प्राप्त करने की संभावना - देखें जन्म - 5
• विकलेंद्रिय व पंचेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान - देखें तिर्यंच - 3